श्रीमद्भगवद्गीता (केवल संस्कृत) ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Srimad Bhagwat Geeta (Only Sanskrit) Book
इस ग्रन्थ का नाम है : श्रीमद्भगवद्गीता (केवल संस्कृत) | इस पुस्तक के मूल रचनाकार हैं : महर्षि वेदव्यास. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : निर्णय सागर प्रेस. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 104 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 224 पृष्ठ हैं |Name of the book is: Srimad Bhagwat Geeta | This book is written by : Maharshi Vedvyas. This book is published by : Nirnay Sagar Press. Approximate size of the PDF file of this book is: 104 MB. This book has a total of 224 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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महर्षि वेदव्यास | धर्म, भक्ति, आध्यात्म | 104 MB | 224 |
पुस्तक से
भगवन् परमेशान भक्तिरव्यभिचारिणी । प्रारब्धं भुज्यमानस्य कथं भवति हे प्रभो. "प्रारब्धं भुज्यमानो हि गीताभ्यासरतः सदा. स मुक्तः स सुखी लोके कर्मणा नोपलिप्यते महापापादिपापानि गीताध्यानं करोति चेत् : कचित्स्पर्श न कुर्वन्ति नलिनीदलमम्बुबत् ॥ गीतायाः पुस्तकं यत्र यत्र पाठः प्रवर्तते तत्र सर्वाणि तीर्थानि प्रयागादीनि तत्र वै| सर्वे देवाश्च ऋषयो योगिनः पन्नगाश्च ये गोपाला गोपिका नापि नारदोदवपार्षदः ।। सहायो जायते शीघ्रं यत्र गीता प्रवर्तते ।
अध्यायं श्लोकपादं वा नित्यं यः पठते नरः । स याति नरतां यावन्मन्वन्तर वसुन्धरे l. गीतायाः श्लोकदशकं सप्त पञ्च चतुष्टयम् । द्वौ त्रीनेकं तदर्ध वा श्लोकानां यः पठेन्नरः ॥ चन्द्रलोकमवाप्नोति वर्षाणामयुतं ध्रुवम् । गीतापाठसमायुक्तो मृतो मानुषतां व्रजेत्. गीताभ्यासं पुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम् गीतेत्युच्चारसंयुक्तो म्रियमाणो गतिं लभेत् ।
गीताशास्त्रमिदं पुण्यं यः पठेत्प्रयतः पुमान् : विष्णोः पदमवानोति भयशोकादिवर्जितः॥ गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च । नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्मकृतानि च मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने सद्गीताम्भसि स्नानं संसारमलनाशनम् ॥ गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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