तन्त्र और साधना-पद्धति हिन्दी पुस्तक | Tantra aur Sadhana-Paddhati Hindi Book PDF

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तन्त्र और साधना-पद्धति हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Tantra aur Sadhana-Paddhati Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : तन्त्र और साधना-पद्धति | इस पुस्तक के लेखक हैं : अनंतश्री स्वामी निगामानंद सरस्वती देव. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : स्वामी प्रज्ञानानन्द सरस्वती. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 116 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 293 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Tantra aur Sadhana-Paddhati | This book is written by : Anant-Shri Swami Nigamanand Saraswati Dev. This book is published by : Dr. Swami Pragyananand Saraswati. Approximate size of the PDF file of this book is: 116 MB. This book has a total of 293 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी निगामानंद सरस्वतीतंत्र, साधना116 MB293


पुस्तक से 

हमारे देश में कई प्रकार के तन्त्रशास्त्र प्रचलित हैं। किन्तु मैंने किसी निर्दिष्ट ग्रन्थका अनुसरण नहीं किया है। जिन क्रियाकलापों के माध्यम से मनुष्यकी आध्यात्मिक उन्नति होती है और गुरुजी से मुझे जो कुछ मिला है, उसी का कुछ अंश साधारण लोगोंके निमित्त प्रकाशित कर रहा हूँ। जो सबके करने योग्य तथा सहजसाध्य है, उन्हें युक्तिके साथ यहाँ लिखा गया है। तन्त्रशास्त्र आर्य ऋषियोंकी अलौकिक सृष्टि है। इन्हें समाहित चित्त से पढ़ने पर विस्मित तथा स्तम्भित होना पड़ता है। ज्ञानी हो या अज्ञानी- सबकी समस्याओंका हल तंत्र में मिलता है। तंत्र साधना शास्त्र है।

 

अनादिकाल से ही मानव समाजको अभीष्ट मार्ग प्रदर्शनार्थ बहु मार्गदर्शक महापुरुष धराधामको पवित्र किये हैं। चाहे किसी भी मार्गमें कोई क्यों न जाये, अन्तिम लक्ष्य सभीका एक ही है सीधा अपने स्वरूपको जानकर जन्म-मृत्यु के चक्कर से छूटना किसी को अभीष्ट है तो भोग-वासनाओं की पूर्ति करते हुए अन्तमें मुक्ति मिले यह भी किसी की आकांक्षा है। किसी को तो जन्म-जन्म में यहाँ तक स्वर्गादि परलोकमें भोग ही प्राप्त हो इसी प्रकार वासना है परन्तु नारकीय कष्ट किसीको भी अभीष्ट नहीं. सुख जितने भी प्राप्त हो स्वरूपानन्दकी अनुभूति भिन्न दुःखका आत्यन्तिक अभाव कभी भी किसी को नहीं हुआ है।

 


आजकल अधिकांश नवशिक्षित तन्त्रशास्त्रको व्यवसायी गुरुओंके द्वारा रचित अर्थोपार्जन के साधन स्वरूप कल्पितशास्त्र कहकर उसमें श्रद्धा नहीं रखते। फलस्वरूप उस शास्त्रको कालक्रमके अनुरूप व्यवसायोपयोगी करने के लिए मूलतन्त्रमें अनेक प्रकार प्रक्षिप्त, रूपक और अर्थवादादिके योग से जो चेष्टा की गई है, उसे उस शास्त्रके आधुनिक मुद्रित ग्रन्थोंको देखने से बहुत ही सरलता से जाना जा सकता है। वेद-प्रकाशित होनेके बहुत बाद में तन्त्र-शास्त्र प्रकाशित हुआ है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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