वास्तु रत्नाकर हिन्दी पुस्तक | Vastu Ratnakar Hindi Book PDF

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वास्तु रत्नाकर पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vastu Ratnakar Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : वास्तु रत्नाकर | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं - श्री विंध्येश्वरी प्रसाद द्विवेदी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्भा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 88 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 232 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Vastu Ratnakar. This book is written/edited by : Shri Vindhyeshvari Prasad Dwivedi | The book is published by : Chaukhambha Sanskrit Series Office, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is 88 MB. This book has a total of 232 pages.



पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री विंध्येश्वरी प्रसाद द्विवेदी ज्योतिष, वास्तु, धर्म88 MB232


पुस्तक से : 

जीवमात्र अपने-अपने अनुरूप निवास स्थान बना कर अपना सुखमय जीवन निर्वाह करते हुए दीखते हैं परन्तु मनुष्यजाति सर्वश्रेष्ठ जाति है, अत एवं इसका निवासस्थान भी सर्वश्रेष्ठ और निरापद होना अनिवार्य है।

 

मैंने इस पुस्तक का संग्रह केवल परोपकार की ही दृष्टि से किया है किसी पर आक्षेप या किसी के पक्षपात करने की दृष्टि से नहीं, अतएव यदि इस संग्रह से सज्जनका कुछ भी उपकार होगा तो मैं अपना परिश्रम सफल समझूंगा और आगे भी इसप्रकार की सेवा करने में प्रयत्नशील रहूँगा।

 

अन्य प्राणी तो केवल अपने परिश्रम से ही अपना-अपना निवासस्थान (घोसले, मान, बिल इत्यादि) तैयार कर लेते हैं किन्तु मनुष्यजाति को अपना भवन निर्माण करने के लिए देश, काल और परिस्थिति पर पूर्ण ध्यान देते हुए तन, मन, धन, जन इत्यादि सभी को इतिकर्तव्यता का रूप देना पड़ता है। कुछ ऐसे पालतू जीव भी हैं जिनके रहने के लिए मनुष्य को ही निवासस्थान बनाने पड़ते हैं।

 

सर्वप्रथम वास्तुविधा का विकास कब और कहाँ हुआ, इस प्रश्न के मन में आते ही विचारधारा झट यही उत्तर देने को उद्यत होती है कि- भारतवर्ष ही विश्वरचना में परम प्रवीण विधाताकी सृष्टिका आदिम स्थान है। अतः भारतवर्ष ही को सर्वप्रथम समस्त विद्याओंको उन्नतिकी चरमसीमा तक पहुँचानेका गौरव प्राप्त हुआ है. इस बात को विश्वविख्यात पुरातध्ववेताओं ने भी मुक्तकण्ठ से स्वीकार किया है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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