वास्तु सार संग्रह (हिन्दी व्याख्या सहित) पुस्तक | Vastu Saar Sangrah (with Hindi Explanation) PDF

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वास्तु सार संग्रह पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vastu Saar Sangrah Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : वास्तु सार संग्रह | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं - आचार्य श्री कमलकान्त शुक्ल | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : डॉ हरिश्चन्द्रमणि त्रिपाठी, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 127 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 418 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Vastu Saar Sangrah. This book is written/edited by : Acharya Shri Kamalkant Shukla | The book is published by : Dr Harischandramani Tripathi. Approximate size of the PDF file of this book is 127 MB. This book has a total of 418 pages.



पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
आचार्य कमलकान्त शुक्ल वास्तु, ज्योतिष127 MB418


पुस्तक से : 

सृष्टि के कण-कण में परम तत्त्व व्याप्त है, यह भारतीय चिन्तनकी मान्यता है। 'सर्व खल्विदं ब्रह्म' इस सिद्धान्त का आधार लेकर निगम एवं आगम की उपासना प्रवर्तित है। उपासनाकी चरम परिणति में सर्वत्र एकत्व आभासित होता है, जो अद्वैतसिद्धि का स्वरूप है।

 

यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् तथा वास्तुशास्त्रके मर्मज्ञ मनीषी राष्ट्रपति सम्मानित आचार्य पं. कमलाकान्त शुक्ल जी ने "वास्तुसारसङ्ग्रह" नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया है तथा राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनुवाद कर साहित्य की श्रीवृद्धि की है।

 

जो भूमि श्रीवृक्ष-निम्ब-अशोक सप्तपर्ण (क्षितवन) आम प्रभृति वृक्षों को उत्पन्न करने वाली हो व आकार में समतल, श्वेत-रक्त-पीत-कृष्ण व कपोत के वर्ण की छः रसों वाली भूमि सम्पूर्ण सम्पदा देनेवाली होती है।

 

शुभैः सुगन्धिभिः स्वादु शीतैः कान्तैरभङ्गुरैः।क्षेत्ररक्षतसीमान्तैः सस्यनिष्पादिभिर्वृताः ।। निष्कण्टकाश्मवल्मीकैः प्रभूतयवसेन्धनैः । विभक्त क्षेत्रसीमान्तैर्गोचरैरुपशोभिता ।। स्थले तृणसमुद्राणामन्तरेषु वसुन्धराः । प्रशस्यन्ते समाऽऽसन्ना स्वादु शीतलवारयः ।। सिता रक्ता च पीता च कृष्णा चैव क्रमान्मही । विप्रादीनां हि वर्णानां सर्वेषामथवा हिता ।।४१।।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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