विचारों की सृजनात्मक शक्ति - श्रीराम शर्मा आचार्य | Vicharon ki Srijanatmak Shakti - Shriram Sharma Acharya PDF

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विचारों की सृजनात्मक शक्ति हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vicharon ki Srijanatmak Shakti Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : विचारों की सृजनात्मक शक्ति | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB है | इस पुस्तक में कुल 20 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "विचारों की सृजनात्मक शक्ति" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Vicharon ki Srijanatmak Shakti | This book is authored by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Vistar Trust, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 2 MB approximately. This book has a total of 20 pages. Download link of the book "Vicharon ki Srijanatmak Shakti" has been given further on this page from where you can download it for free.


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श्रीराम शर्मा आचार्यमनोविज्ञान, अध्यात्म2 MB20



पुस्तक से : 

जीवनकी अन्यान्य बातोंकी अपेक्षा सोचने की प्रक्रिया पर सामान्यतः कम ध्यान दिया गया है, जबकि मानवी सफलताओं असफलताओंमें उसका महत्त्वपूर्ण योगदान है। विचारणाकी शुरुआत मान्यताओं अथवा धारणासे होती है, जिन्हें या तो मनुष्य स्वयं बनाता है अथवा किन्हीं दूसरेसे ग्रहण करता है या वे पढ़ने, सुनने और अन्यान्य अनुभवोंके आधार पर बनती हैं।

 

परिस्थिति विशेषमें लोग प्राय: जिस ढंग से सोचते एवं दृष्टिकोण अपनाते हैं, उससे भिन्न स्तर का चिंतन करने के लिए भी अपने मनको अभ्यस्त किया जा सकता है। मानसिक विकास के लिए, अभीष्ट दिशामें सोचने के लिए अपनी प्रकृतिको मोड़ा भी जा सकता है।

 

चिंतन पद्धतिमें अर्जित की गई भली-बुरी आदतों की भी भूमिका होती है। स्वभाव-चिंतन को अपने ढरें में घुमा भर देने में समर्थ हो जाता है। स्वस्थ और उपयोगी चिंतनके लिए उस स्वभावगत ढर्रेको भी तोड़ना आवश्यक है जो मानवी गरिमा के प्रतिकूल है अथवा आत्मविकासमें बाधक है।

 

 

कर्म- विचारों के गर्भमें ही पकते हैं। जैसे भी विचार होंगे उसी ढंगकी गतिविधि मनुष्य अपनाएगा। जो प्रयासको सफल, उपयोगी और कल्याणकारी बनाना चाहते हैं, उन्हें सर्वप्रथम अपनी विचारणाकी प्रक्रियासे अवगत होना चाहिए। अनुपयोगी निषेधात्मकको सुधारने, बदलने तथा उपयोगीको बिना किसी असमंजस के स्वीकारनेके लिए सतत तैयार रहना चाहिए।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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