व्यावहारिक ज्यौतिष सर्वस्वम् - पंडित देवचन्द्र झा हिन्दी पुस्तक | Vyavaharik Jyotish Sarvasvam - Pandit Dev Chandra Jha Hindi Book PDF

  

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व्यावहारिक ज्यौतिष सर्वस्वम् हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vyavaharik Jyotish Sarvasvam Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : व्यावहारिक ज्यौतिष सर्वस्वम् | इस पुस्तक के लेखक हैं - पंडित देवचन्द्र झा | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखंबा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 114 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 224 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Vyavaharik Jyotish Sarvasvam. This book is written by : Pandit Dev Chandra Jha | The book is published by : Chaukhamba Surbharati Prakashan, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is 114 MB. This book has a total of 224 pages.



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पंडित देवचन्द्र झा ज्योतिषी, धार्मिक114 MB224


पुस्तक से : 

प्रतिपत् प्रथमा ज्ञेया द्वितीया च ततः परा । तृतीयाज्थ चतुर्थी च पञ्चमी क्रमशस्तथा । षष्ठी ततः सप्तमी च अष्टमी नवमी पुनः । दशम्येकादशी तद्वत् द्वादशी च त्रयोदशी । चतुर्दशी तथान्या तु कृष्णेमा पूर्णिमा सिते ।

 

यह ग्रन्थ सर्वथा व्यावहारिक है। इसमें चार स्कन्ध हैं। प्रथम पञ्चाङ्ग स्कन्धमें पश्चाङ्गसे सम्बद्ध प्रायः सभी विषयोंका विस्तार से वर्णन है। तृतीय जातकस्कन्धमें जातकसे सम्बद्ध विषयों का वर्णन तथा उदाहरणके द्वारा फलादेशआदि करनेका दिग्दर्शन कराया गया है। 

 

एक सूर्योदयसे दूसरे सूर्योदय तकका समय सावनदिन कहलाता है। ऐसे तीस सावनदिनोंसे एक सावनमास होता है। चान्द्रमासमें भी तीस तिथियाँ होती हैं । सौरमासमें भी सौरदिनकी संख्या तीस होती है। सूर्य द्वारा किसी राशिके एकांश भुक्त होने पर एक सौरदिन होता है।

 

कृत्तिकादि नक्षत्रोंकी व्यवस्थाके अनुसार अन्त्य अर्थात् कार्तिक मास, उपान्त्य अर्थात् आश्विन मास तथा फाल्गुन, ये तीनों मास तीन-तीन नक्षत्रोंसे युक्त पूर्णिमा वाले मास होते हैं। शेष सभी मास दो-दो नक्षत्र वाले होते हैं। माघ शुक्ल पञ्चदशीको मघा नक्षत्र रहनेके वजहसे ही माघी पूर्णिमा तथा माघ महीना कहा जाता है। इसी तरह अन्य मास भी, यानी चित्रा नक्षत्र युक्ता पूर्णिमा चैती पूर्णिमा तथा चैत्र मास आदि है। 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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