अग्निहोत्र हवन विधि हिन्दी पुस्तक | Agnihotra Havan Vidhi Hindi Book PDF


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अग्निहोत्र हवन विधि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Agnihotra Havan Vidhi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : अग्निहोत्र हवन विधि | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : भारत भूषण आर्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : आर्य प्रतिनिधि सभा जम्मू कश्मीर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 8 MB है | इस पुस्तक में कुल 40 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "अग्निहोत्र हवन विधि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Agnihotra Havan Vidhi | This book is written/edited by : Bhart Bhushan Arya | This book is published by : Arya Pratinidhi Sabha Jammu Kashmir | PDF file of this book is of size 8 MB approximately. This book has a total of 40 pages. Download link of the book "Agnihotra Havan Vidhi" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
भारत भूषण आर्यधार्मिक8 MB40



पुस्तक से : 

बात चाहे सुगन्धि विचारों की हो या व्रातावरण की, दोनों से ही ईश्वर और ईश्वर के बनाये सभी प्राणी प्रसन्न होते हैं। मनुष्य का दायरा सीमित होने की वजह से विचारों के आदान प्रदानका लाभ केवल बहुत थोड़े से प्राणियों को ही मिल पाता है।

 

सभी यज्ञोंका अपना एक अलग वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण है। अग्निहोत्र अर्थात् देवयज्ञ आर्योंकी संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। सांसारिक प्राणियोंके लिये यह नैतिक कर्म हैं। सभी मनुष्यको इन्हें अपनी शक्ति के अनुसार अवश्य करना चाहिये।

 

तूने ही हमें उत्पन्न किया है, तू ही पालन कर रहा है। तुझसे ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता है तू। तेरा महान तेज है, छाया हुआ सभी स्थान है। अपनी आत्माको आपके तेज़ से प्रकाशित और प्रफुलित करने के लिये हम आपके तेजस्वी स्वरूप को धारण किया करते हैं।

 

 

अग्निहोत्र आयुर्वेद का एक बड़ा महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। यज्ञ में प्रयोग होने वाले भस्में बनाने के लिए अभ्रक, मुक्ता, रजत आदि अन्य धातुओंको अग्नि का जितना अधिक ताप दिया जाता है, उससे इन धातुओं की रोग निवारणकी शक्ति कई गुणा अधिक हो जाती है। जिस भी घर में अक्सर यज्ञ होता है। वहां पर रोग के किटाणु कभी पनपते ही नही है और खाने पीने की चीजे भी जल्दी खराब नहीं होती हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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