अष्टावक्र गीता - रामानंद सरस्वती हिन्दी पुस्तक | Ashtavakra Gita - Ramanand Saraswati Hindi Book PDF


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अष्टावक्र गीता हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ashtavakra Gita Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : अष्टावक्र गीता | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : आचार्य रामानंद सरस्वती | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : मनोज पॉकेट बुक्स | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 102 MB है | इस पुस्तक में कुल 322 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "अष्टावक्र गीता" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Ashtavakra Gita | This book is written/edited by : Acharya Ramanand Saraswati | This book is published by : Manoj Pocket Books | PDF file of this book is of size 102 MB approximately. This book has a total of 322 pages. Download link of the book "Ashtavakra Gita" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
आचार्य रामानंद सरस्वतीधार्मिक102 MB322



पुस्तक से : 

सुजाता की आंखों के सामने अंधकार छा गया। वह अचेत हो गई। उसी रात उसने पुत्रोंको जन्म दिया। ऋषि उद्दालक ने उस संतान को श्वेतकेतु नाम दिया। वो ये जानते थे की दामाद ने अपनी संतानको आठ स्थानों से विकल होनेका शाप दिया था। इसलिए वो विकलांग ही पैदा हुआ था।

 

क्या ज्ञान केवल बड़ी आयु वर्ग का प्राणी ही अर्जित कर सकता है। तुमने अवश्य ही बड़ी आयु के ऐसे लोगोको भी देखा होगा, जो आजीवन मूढ़ता से युक्त रहते हैं। मैं दरबार में उपस्थित विद्वानों जितना ज्ञानवान तो नहीं, किंतु क्या मैं उनसे ज्ञान प्राप्त करनेका अधिकार भी नहीं रखता।

 

शास्त्रार्थ प्रारंभ होने से पहले ही मैं आपको यह बताना अपना कर्तव्य समझता हूं कि यदि आप शास्त्रार्थ में विजयी हुए तो महाराजकी ओर से आपको बहुमूल्य पारितोषिक प्रदान की जाएगी, किंतु यदि आप पराजित हुए तो आपको नदी में जल समाधि लेनेको बाध्य होना पड़ेगा। यही यहां का नियम है।

 

 

12 वर्ष की आयु में ही अष्टावक्र ने समस्त वेदोंका परायण कर लिया था। ज्ञान के प्रति वह सहज ही आकृष्ट हो जाता था। विभिन्न प्रकार के ज्ञान भंडारका वह आलोड़न-विलोड़न किया करता। यह बात अलग थी कि वह उन सभी से सहमत नहीं हो पाता। अपने मनमें ही वो तर्क-वितर्क किया करता। आत्ममंथन के पश्चात सत्य उसके सम्मुख उपस्थित हो जाता और भ्रमका अंधकार छंट जाता था।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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