भारत की पहचान हिन्दी पुस्तक | Bharat Ki Pahchan Hindi Book PDF

   

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भारत की पहचान हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bharat Ki Pahchan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : भारत की पहचान | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : धर्मपाल | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सिद्ध | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 7 MB है | इस पुस्तक में कुल 94 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "भारत की पहचान" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Bharat Ki Pahchan | This book is authored by : Dharmpal | This book is published by : Siddha | PDF file of this book is of size 7 MB approximately. This book has a total of 94 pages. Download link of the book "Bharat Ki Pahchan" has been given further on this page from where you can download it for free.


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धर्मपालसंस्कृति7 MB94



पुस्तक से : 

धर्मपाल ने गांधीजी के 'हिन्द स्वराज' के उस मर्म को समझा है जिसमें गांधीजी आधुनिक सभ्यता को आसुरी सभ्यता मानते हैं। शरीर को सुख कैसे मिले यही यूरोपीय सभ्यता आज भी देखती है। लेकिन गांधीजी के अनुसार यह सभ्यता तो अधर्म है। 

 

धर्मपाल जी के अनुसार श्रेष्ठ वर्ग का तबका भारतीय परम्परा को आत्मसात् करके भविष्य का नक्शा न बना पाया। उसमें सृजनात्मक प्रतिभा होती तो पश्चिम से उसने जो कुछ सीखा, उसे ही ठीक और सही परिस्थितियों में ढालकर उसे इस देशके फायदे की वस्तु बना सकता था।

 

गांधीजी रेलगाड़ी के खिलाफ थे, किन्तु यदि रेल के होते हुए कुछ मनुष्यों को उसमें चढ़ने की इजाजत नहीं हो, इसे वे अन्याय मानते थे। इसीलिये दक्षिण अफ्रीका में गये हुए भारतीयों और अपने आत्मसम्मान की रक्षाके लिये गांधीजी की सबसे पहली लड़ाई रेलगाड़ी में बैठने को लेकर ही हुई थी।

 

 

इसके लिए हमें अभी से ही शुरुवात करनी होगी ताकि जो आवश्यक बदलाव हमें लाने चाहिए, उन्हें तत्काल लाया जाए। पिछले दो-ढाई सौ वर्षों में हमारे यहाँ जो कुछ भी बदला है, उसमें से शायद ही हमारे लायक कुछ हो। धर्मपाल जी ने अपने शोध से यह भी प्रगट किया है कि भारत केवल कृषि प्रधान देश ही नहीं था सन् १७५० के आसपास भारत और चीन में कुल विश्व का ७३ प्रतिशत औद्योगिक उत्पादन हुआ करता था।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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