ध्यान से चिंता निवारण - चमनलाल गौतम हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Dhyan Se Chinta Nivaran - Chaman Lal Gautam Hindi Book PDF


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ध्यान से चिंता निवारण हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Dhyan Se Chinta Nivaran Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : ध्यान से चिंता निवारण | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. चमनलाल गौतम | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : संस्कृति संस्थान, बरेली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 55 MB है | इस पुस्तक में कुल 161 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "ध्यान से चिंता निवारण" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Dhyan Se Chinta Nivaran | This book is written/edited by : Dr Chaman Lal Gautam | This book is published by : Sanskriti Sansthan, Bareilly | PDF file of this book is of size 55 MB approximately. This book has a total of 161 pages. Download link of the book "Dhyan Se Chinta Nivaran" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. चमनलाल गौतमधार्मिक, आध्यात्मिक55 MB161



पुस्तक से : 

मानसिक दृष्टि से मानव अधिक दुखी चिन्तित और नाना प्रकारकी समस्याओं में उलझा हुआ रहता है। आंतरिक दृष्टि से आज अस्सी प्रतिशत व्यक्ति चिन्ता, शोक और भय से त्रस्त हैं। अमीर लोग समाजमें अपनी उच्च प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए ब्लड प्रेशर से परेशान रहते हैं।

 

सैकड़ों मानसिक उलझने हमारी मानसिक कमजोरियों के कारण उत्पन्न होती हैं। आज समाजमें फैली अनैतिकता, मिलावट, भ्रष्टाचार, बेईमानी आदि के मनोविकार मानसिक अशांति उत्पन्न कर रहे हैं। इन सामाजिक दोषों से मन में अनेक भावना ग्रन्थियाँ उत्पन्न होकर जीवनको अशांत बना रही हैं।

 

क्रोध, ईर्ष्या आदि मनोविकार मानसिक चिन्ताओं की असली जड़ हैं। मन के भारको हल्का करने के लिए और स्वस्थ रहने के लिए हमे मानसिक पापों का परित्याग करना चाहिए। मनुष्य की अनियन्त्रित इच्छायें और अपूर्ण अभिलाषाएं गुप्त मनमें दबकर कई प्रकार के विकार उत्पन्न करती रहती हैं ।

 

 

मन को पवित्र, एकाग्र और स्थिर रखने के लिए श्वास प्रश्वासका ध्यान सरलतम साधना है। इसे थोड़े अभ्यास से ही विकसित किया जा सकता है। मनमें दुर्भाव तब उत्पन्न होते हैं जब मन तामसिक वृत्ति का रहता है। पाप वृत्तियाँ तभी पनपती हैं जब मन निर्बल होता हैं। निराशा के भाव, दुर्बल मनका एक सूचक है। मानसिक चिन्ताएँ व्यक्ति को तभी परेशान करती है जब मन अशांत स्थिति में होता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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