दिवास्वप्न - गिजुभाई बधेका पीडीएफ | Divaswapna - Gijubhai Badheka PDF

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दिवास्वप्न हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Divaswapna Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : दिवास्वप्न | इस पुस्तक के लेखक हैं : गिजुभाई बधेका | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB है | इस पुस्तक में कुल 66 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "दिवास्वप्न" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Divaswapna | This book is written by : Gijubhai Badheka | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 2 MB approximately. This book has a total of 66 pages. Download link of the book "Divaswapna" has been given further on this page from where you can download it for free.


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गिजुभाई बधेकाशिक्षा2 MB66



पुस्तक से : 

लड़कों को पढ़ाना और वो भी प्राथमिक पाठशाला के छात्रों को, यह ऐसा काम है, जिसमें एड़ी-चोटी का पसीना एक करना पड़ता है। मेज पर बैठकर लेख लिखना सरल है और कल्पनामें पढ़ा देना भी सरल है। कठिन है तो केवल प्रत्यक्ष काम करना।

 

मुझे विश्वास हो गया था कि कई हेर-फेर किये जा सकेंगे। पाठयपुस्तकों को भी मैं एक नज़र देख गया। गुण-दोष आँखोंके सामने तैरने लगे। क्या-क्या सुधार हो सकेंगे, सो भी सोच लिया। मन में मानो पहले दिनसे आखिरी दिन तक के कामका एक चित्र खड़ा हो गया।

 

मुझे अपने प्रधानाध्यापक पर दया आई। मैंने कहा- 'साहब, तमाचा मारकर पढ़ानेका काम तो सब कर ही रहे हैं और उसका फल भी देख रहा हूँ कि लड़के बेहद असभ्य, जंगली, अशान्त और अव्यवस्थित हैं। मैं यह भी देख सका हूँ कि चार वर्षोंकी शिक्षामें लड़के मानो यही सीखे हैं।

 

 

प्रयोग तो चल ही रहा है। अब तो मैं खुद भी यह अनुभव कर रहा हूँ कि विद्यार्थियों को और शिक्षकों को एक दूसरेके नजदीक लाने में कहानी कितनी जादू-भरी और कारगर चीज है। पहले दिन जो मेरी बात सुनते तक नहीं थे, और जो 'हा-हा, ही ही' करके मुझ दिक कर रहे थे, वे सब ही जब से कहानी सुननेको मिली है, तब से शान्त बन गये हैं। मेरा हर कहा सुनते हैं। जैसा मै कहता हूं, वैसा ही करते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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