गायत्री का मंत्रार्थ - श्रीराम शर्मा आचार्य पीडीऍफ़ | Gayatri ka Mantrartha - Shriram Sharma Acharya PDF


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गायत्री का मंत्रार्थ हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gayatri ka Mantrartha Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गायत्री का मंत्रार्थ | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2.5 MB है | इस पुस्तक में कुल 96 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गायत्री का मंत्रार्थ" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Gayatri ka Mantrartha | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Press, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 2.5 MB approximately. This book has a total of 96 pages. Download link of the book "Gayatri ka Mantrartha" has been given further on this page from where you can download it for free.


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पंडित श्रीराम शर्मा आचार्यधर्म, साधना 2.5 MB96



पुस्तक से : 

प्राणशक्ति के अभाव में मन का भी बुरा हाल हो जाता है। भय कहीं अमुक या अनिष्टकी आशंकाऐं अकारण मन में उठती रहती हैं, ऐसा लगता रहता है कि कहीं अमुक प्रकार की आपत्ति न आ जाय, संकट उपस्थित न हो जाये। कोई विपत्ति सचमुच ही ऊपर आ जाय तब तो उनका बुरा हाल हो जाता है, हर घड़ी दिल धड़कता है, रातको नींद नहीं आती. ऐसा अनुभव होता है, मानो कोई उसे बुरी तरह कुचल रहा है।

 

गायत्री वेदमाता है। गायत्रीसे ही चारों वेद और उनकी ऋचायें निकली हैं। वेद समस्त विद्याओंके भण्डार हैं । समस्त तत्वज्ञान और भौतिक विज्ञान वेदोंके अन्तर्गत मौजूद है । जो कुछ वेदमें है उसका सार गायत्री में है । यदि कोई गायत्री को भली प्रकार समझ ले तो उसे वेद, शास्त्र, पुराण, उपनिषद् आदिकी सभी बातोंका ज्ञान स्वयमेव हो सकता है ।

 

विभिन्न ऋषियों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से गायत्री महामन्त्रका अर्थ किया है । अनेक ग्रंथों में अनेक प्रकार से उसके भाष्य उपलब्ध हैं। यह भिन्नता प्रतिकूलता या विरोध की द्योतक नहीं वरन् एक-दूसरेकी पूरक है । जो बात एक से छूट गई है, वह दूसरे में पूरी की गई है, फिर भी यह सब मिलाकर गायत्रीका अर्थ सर्वांगपूर्ण हो गया है ऐसा नहीं कहा जा सकता ।

 

 

गायत्री के 24 अक्षरों में ज्ञान-विज्ञानका महान् भण्डार छिपा हुआ है । उसके एक-एक अक्षरमें इतना दार्शनिक तत्वज्ञान सन्निहित है जिसका पूरी तरह पता लगाना कठिन है । आध्यात्मिक और भौतिक सभी प्रकारके ज्ञान-विज्ञान उसके गर्भमें मौजूद हैं, जिनका यदि ठीक-ठीक पता चल जाय तो मनुष्य उन सभी वस्तुओंको प्राप्त कर सकता है जो उसे अभीष्ट हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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