गायत्री की दैनिक साधना एवं यज्ञ पद्धति - श्रीराम शर्मा आचार्य | Gayatri ki Dainik Sadhana evam Yagya Paddhati - Shriram Sharma Acharya PDF


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गायत्री की दैनिक साधना एवं यज्ञ पद्धति हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gayatri ki Dainik Sadhana evam Yagya Paddhati Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गायत्री की दैनिक साधना एवं यज्ञ पद्धति | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 25 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गायत्री की दैनिक साधना एवं यज्ञ पद्धति" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Gayatri ki Dainik Sadhana evam Yagya Paddhati | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Press, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 25 pages. Download link of the book "Gayatri ki Dainik Sadhana evam Yagya Paddhati" has been given further on this page from where you can download it for free.


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पंडित श्रीराम शर्मा आचार्यधर्म, साधना 1 MB25



पुस्तक से : 

गायत्री मंत्रका सच्चे हृदयसे जप करने से मनुष्य का आत्मिक कायाकल्प हो जाता है और उसे ऐसा जान पड़ता है कि उसके हृदयसे सब प्रकार के विकार दूर होकर, सतोगुणी तत्त्वों की अभिवृद्धि हो रही है। इसके प्रभाव से विवेक, दूरदर्शिता, तत्त्वज्ञानका उदय होकर अनेक अज्ञान जनित दुःखोंका निवारण होता है।

 

गायत्री का मुख्य प्रभाव केवल कुछ सांसारिक लाभ प्राप्त कर लेना अथवा विपत्तियोंसे रक्षा पा जाना नहीं है। उसका सबसे बड़ा प्रभाव तो यह है कि वह मनुष्यके मन को, अंतःकरण को, मस्तिष्क को एवं विचारधारा को सन्मार्गकी तरफ प्रेरित करती है और एक सच्चे मनुष्यत्वका विकास करती है। सत्तत्त्व की वृद्धि करना ही इसका प्रधान कार्य है।

 

जैसे मिठाईको अकेले-अकेले ही चुपचाप खा लेना और समीपवर्ती लोगों को उसे न चखाना बुरा है। वैसे ही गायत्री साधनाको स्वयं तो करते रहना, पर अन्य प्रियजनों, मित्रों, कुटुंबियों को उसके लिए प्रोत्साहित न करना एक बहुत बड़ी बुराई तथा भूल है। इस बुराई से बचने के लिए हर साधकको चाहिए कि अधिक से अधिक लोगों को इस दिशा में प्रोत्साहित करें।

 

 

हम जहाँ से अन्न, जल, वस्त्र, ज्ञान तथा अनेक सुविधा साधन प्राप्त करते हैं, वह मातृभूमि हमारी सबसे बड़ी आराध्या है। हमारे मनमें माताके प्रति जैसी अगाध श्रद्धा होती है, वैसी ही मातृभूमिके प्रति भी रहनी चाहिए और मातृ ऋणसे उऋण होने के लिए अवसर ढूँढ़ते रहना चाहिए। अक्षत, पुष्प, जल से धरतीमाँ का पूजन करें अथवा धरती माँ को हाथसे स्पर्श करके नमस्कार करें। भावना करें कि धरती माताके दिव्य गुण हमें प्राप्त हो रहे हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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