गायत्री की प्रचंड प्राण ऊर्जा - श्रीराम शर्मा आचार्य | Gayatri ki Prachand Praan Urja - Shriram Sharma Acharya PDF


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गायत्री की प्रचंड प्राण ऊर्जा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gayatri ki Prachand Praan Urja Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गायत्री की प्रचंड प्राण ऊर्जा | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2.3 MB है | इस पुस्तक में कुल 49 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गायत्री की प्रचंड प्राण ऊर्जा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Gayatri ki Prachand Praan Urja | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Press, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 2.3 MB approximately. This book has a total of 49 pages. Download link of the book "Gayatri ki Prachand Praan Urja" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्यधर्म, अध्यात्म 2.3 MB49



पुस्तक से : 

मनुष्यं अथवा अन्य जीव-जन्तुओंके जीवित रहने और विविध क्रियाकलाप करते रहने का सारा श्रेय इस प्राणशक्तिको ही है। जिसमें यह तत्त्व जितना न्यूनाधिक होता है उसी अनुपात से उसकी सशक्तता, समर्थता, प्रतिभा एवं स्थितिमें कमी-वेशी दिखाई पड़ती है । मनुष्य अन्य प्राणियोंसे श्रेष्ठ एवं समर्थ इसलिए है कि उसमें प्राणतत्त्वका दूसरोंकी अपेक्षा बाहुल्य रहता है ।

 

गायत्री महामंत्रका प्रमुख उद्देश्य प्राणशक्तिको उपलब्ध करना ही है । उसकी उपासना यदि ठीक प्रकार से की जाय तो उपासक में प्राणशक्तिकी अभिवृद्धि शीघ्र ही होने लगती है और वह उस अभिवर्धनके आधार पर कई तरहकी सफलतायें प्राप्त करने लगता है । कहने वाले इसे गायत्री माताका अनुग्रह, आशीर्वाद कहते हैं पर वस्तुतः होता यह है कि उस उपासनासे साधकमें प्राणशक्ति विकसित होती चली जाती है।

 

गायत्री महामन्त्रमें वही प्रक्रिया या तत्त्वज्ञान सन्निहित है। जो विधिवत उसका आश्रय ग्रहण करता है, उसे तत्काल अपनी समग्र जीवनी-शक्तिका अभिवर्धन होता हुआ दृष्टिगोचर होता है। जितना ही प्रकाश बढ़ता है, उतनाही अन्धकार दूर होता है, इसी प्रकार आन्तरिक समर्थता बढ़नेके साथ-साथ जीवनको दुःख-दारिद्र का घर व संसारको भवसागर के रूप में दिखाने वाले नाटकीय वातावरणसे भी मुक्ति मिलती है।

 

 

सजीवता, प्रफुल्लता, स्फूर्ति, सक्रियता जैसी शारीरिक विशेषतायें तथा मनस्विता, तेजस्विता, प्रतिभा, चतुरता जैसी मानसिक विभूतियाँ और कुछ नहीं प्राणरूपी सूर्यकी किरणें-प्राणरूपी समुद्रकी लहरें हैं। इतना ही नहीं अध्यात्मिक स्तर पर पाई जाने वाली सहृदयता, कर्त्तव्यनिष्ठा, करुणा, संयमशीलता, तितिक्षा, श्रद्धा, सद्भावना, समस्वरता जैसी महानताएँ भी प्राणशक्तिकी ही उपलब्धियाँ हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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