गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण - श्रीराम शर्मा आचार्य | Gayatri Sadhana se Kundalini Jagran - Shriram Sharma Acharya PDF


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गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gayatri Sadhana se Kundalini Jagran Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2.5 MB है | इस पुस्तक में कुल 49 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Gayatri Sadhana se Kundalini Jagran | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Press, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 2.5 MB approximately. This book has a total of 49 pages. Download link of the book "Gayatri Sadhana se Kundalini Jagran" has been given further on this page from where you can download it for free.


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पंडित श्रीराम शर्मा आचार्यधर्म, योग, साधना 2.5 MB49



पुस्तक से : 

पुराणोंमें ब्रह्माजी के दो पत्नी होनेका उल्लेख है - (1) गायत्री, (2) सावित्री। वस्तुतः इस अलंकारिक चित्रण के पीछे परमात्माकी दो प्रमुख शक्तियोंके होने का भाव दर्शाया गया है, पहली भाव चेतना या परा प्रकृति दूसरी पदार्थ चेतना या अपरा प्रकृति। सृष्टिमें मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि की जो भी क्रियाशीलता दिखाई देती है, वह सब परा प्रकृति अथवा गायत्री विद्याके अन्तर्गत आती है।

 

योग विज्ञान के अन्तर्गत कुण्डलिनी साधनाकी चर्चा प्रायः होती है । कुण्डलिनी साधना वस्तुतः चेतन प्रकृति द्वारा जड़ पदार्थोंके नियन्त्रण की ही विद्या है । भौतिक विज्ञान तो उपकरण और यंत्रसाध्य होते हैं, पर परा और अपरा प्रकृतिके संयोगसे प्राप्त विज्ञानमें ऐसी कोई जटिल प्रणाली आवश्यक नहीं होती।

 

गायत्री और सावित्री दोनों परस्पर पूरक हैं। इनके मध्य कोई प्रतिद्वन्दिता नहीं। गंगा यमुना की तरह ब्रह्म हिमालय की इन्हें दो निर्झरिणी कह सकते हैं। सच तो यह है कि दोनों अविच्छिन्न रूप से एक-दूसरे के साथ गुँथी हुई हैं। इन्हें एकप्राण दो शरीर कहना चाहिए ।

 

 

कुण्डलिनी साधना को अनेक स्थानों पर षट्चक्र वैधन की साधना भी कहते हैं। पंचकोषी साधना या पंचाग्नि विद्या भी गायत्रीकी कुण्डलिनी या सावित्री साधना के रूप है। एम. ए. एक डिग्री है। इसे हिन्दी, अंग्रेजी, सिक्क्सि, इकानामिक्स किसी भी विषयसे प्राप्त किया जा सकता है । उसी प्रकार आत्मतत्व, आत्मशक्ति एक है उसे प्राप्त करने के लिए वेवचन विश्लेषण और साधना विधान भिन्न हो सकते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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