गीता तत्त्वालोक (उड़िया बाबाजी महाराज) हिन्दी पुस्तक | Geeta Tatvalok (Udiya Babaji Maharaj) Hindi Book PDF


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गीता तत्त्वालोक (उड़िया बाबाजी महाराज) हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Geeta Tatvalok (Udiya Babaji Maharaj) Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गीता तत्त्वालोक (उड़िया बाबाजी महाराज) | इस पुस्तक के संपादक हैं : स्वामी सनातन देव | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री पूर्णानन्द तीर्थ (उड़िया बाबा) ट्रस्ट समिति, वृन्दावन | इस पुस्तक में परम पूज्यपाद ब्रह्मलीन स्वामी श्रीपूर्णानन्दतीर्थ (उड़िया बाबाजी) द्वारा श्रीमद्भगवद्गीताकी व्याख्या है | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 56 MB है | इस पुस्तक में कुल 529 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गीता तत्त्वालोक (उड़िया बाबाजी महाराज)" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Geeta Tatvalok (Udiya Babaji Maharaj) | Editor of this book is : Swami Sanatan Dev| This book is published by : Shri Poornanand Teeth (Udiya Baba) Trust Samiti | This book is an explanation of Shrimad Bhagwat Geeta by Param Pujyapad Brahmaleen Swami Shri Poornanandteerth (Udiya Babaji). PDF file of this book is of size 56 MB approximately. This book has a total of 529 pages. Download link of the book "Geeta Tatvalok (Udiya Babaji Maharaj)" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी सनातनदेवधर्म, अध्यात्म, भक्ति 56 MB529



पुस्तक से : 

भारतीय वाङ्मयमें श्रीमद्भगवद्गीता का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। यदि संसार के सार्वभौम साहित्य की दृष्टि से देखें तो भी इसकी गणना सर्वप्रमुख ग्रन्थों में की जा सकती है। संसार में सम्भवतः बाइबिल को छोड़कर और कोई ऐसा ग्रन्थ नहीं है जिसका इतनी भाषाओं में प्रकाशन और प्रवर्तन हुआ हो।

 

प्रस्तुत ग्रन्थके वक्ता परम पूज्यपाद ब्रह्मलीन श्रीउड़िया बाबाजी महाराज अपने समय के एक सर्वमान्य सन्त थे। उनके अनुभव, ब्रह्मनिष्ठा और त्याग-वैराग्यके कारण साधु-समाज में उनका बहुत ऊँचा स्थान था। उनके कथनमें एक नवीन ओज और प्रभाव होता था। वे सदा लक्ष्य पर दृष्टि रखकर बोलते थे और थोड़े शब्दोंमें ही बहुत ऊँची बात कह जाते थे।

 

वे सत्संगकी दृष्टि से गीता की शंकरानन्दी टीका लेकर प्रातः काल नित्य ही कुछ प्रवचन किया करते थे। यह प्रवचन कैसे आरम्भ हुआ उसका उल्लेख स्वामी श्रीसिद्धेश्वराश्रम जी ने अपनी अवतरणिका में किया है। उस प्रवचन को स्वामीजी जितना हो सकता लिख लेते थे। बातें उसमें बहुत महत्त्वपूर्ण और जिज्ञासु साधकोंके लिए उपयोगी होती थीं।

 

 

यह एक तत्त्वनिष्ठ महापुरुषकी वाणी है। इसमें यद्यपि विद्वान् व्याख्याकारों की तरह शब्दों का चमत्कार और किसी विशेष सिद्धान्त का आग्रह नहीं है, तथापि भावों की गम्भीरता और विवेचनकी प्राञ्जलता स्पष्ट पाई जाती है। अतः वैदुष्य का प्रदर्शन न होने पर भी यह वैदुष्य से वञ्चित नहीं है। श्रीमहाराजजी ने यद्यपि अद्वैतवादकी दृष्टि से ही विवेचन किया है, परन्तु आपके विवेचनमें किसी प्रकार की खींचतान नहीं है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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