घर जमाई - प्रेमचंद हिन्दी पुस्तक | Ghar Jamai - Premchand Hindi Book PDF


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घर जमाई हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ghar Jamai Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : घर जमाई | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : मुंशी प्रेमचंद | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : साई ईपब्लिकेशंस | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 31 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "घर जमाई" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Ghar Jamai | This book is written by : Munshi Premchand | This book is published by : Sai ePublications | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 31 pages. Download link of the book "Ghar Jamai" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
मुंशी प्रेमचंदकहानी1 MB31



पुस्तक से : 

जैसे कि उस पर उसका कोई अधिकार ही नही है। बहनों का विवाह हो गया था। दूसरा भाई नही था। बेचारा अकेले घर में जाने से भी डरता था। माँ की परछाईं से डरता था। जिस कोठरी में उसकी मां ने देह त्याग किया था, उधर वह आँखें तक न उठाता था।

 

वहाँ लोग पल-पल पर चिलम पीते हैं, मैं आंख बन्द करके अपने काम में लगा रहता हूँ। सांझ के समय घरवाले गाने बजाने चले जाते हैं, मैं रात तक गाय-भैंसे दुहता रहता हूं। उसका यह पुरस्कार मिल रहा है कि कोई खानेको भी नहीं पूछता। ऊपर से गालियाँ भी मिलती हैं।

 

सास कहती थी कि तुम इस घरको अपना ही समझो, तुम्हीं मेरी आँखों के तारे हो। वह उससे अपने लड़कों और बहुओं की शिकायत भी करती थी। बाप के मरते ही वह घर गया और अपने हिस्सेकी जायदाद को इकट्ठा करके, रुपयों की थैली लिए हुए वापस आ गया।

 

 

उन आँखों में कितनी करुणा थी। उसे ऐसा जान पड़ा मानो माता आँखों में आँसू भरे, उसे छाती से लगने के लिए हाथ फैलाये उसकी ओर ही आ रही है। वह उस मधुरे भावना में अपने आप को भूल गया। ऐसा जान पड़ा मानो माता ने उसे छातीसे लगा लिया हो और उसके सिर पर हाथ फेर रही है। वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसी आत्म-सम्मोहित दशा में उसके मुँहसे अम्मा, तुमने मुझे इतना भुला दिया।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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