घेरण्ड संहिता हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Gheranda Samhita Hindi Book PDF


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घेरण्ड संहिता हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gheranda Samhita Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : घेरण्ड संहिता | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : श्री १००८ श्री स्वामीजी महाराज | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री पीताम्बरा पीठ, मध्य प्रदेश | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 14 MB है | इस पुस्तक में कुल 120 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "घेरण्ड संहिता" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Gheranda Samhita | This book is written/edited by : Shri १००८ Shri Swami Ji Maharaj | This book is published by : Shri Pitambara Peeth, Madhya Pradesh | PDF file of this book is of size 14 MB approximately. This book has a total of 120 pages. Download link of the book "Gheranda Samhita" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री श्री स्वामीजी महाराजधार्मिक, आध्यात्मिक14 MB120



पुस्तक से : 

संपूर्ण भारतवर्ष में योग विद्याका महत्व प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। आर्य जाति के इतिहास में प्रधान रूप में योगका विस्तार से विषय विवेचन किया गया है। मनुष्य जीवन के अर्थ, धर्म एवं मोक्ष के निरूपण में सर्वत्र ही योगकी प्रधानता है।

 

प्रस्तुत योग विषयक पुस्तक श्री घेरण्ड मुनि द्वारा विरचित घेरण्ड संहिता के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें घेरण्ड मुनि ने अपने शिष्य चण्ड कापालि को योगका अनुशासन सिखाया है। अन्य अनेक ऋषि मुनियों की तरह ही श्री घेरण्ड मुनिका भी परिचय उपलब्ध नहीं है।

 

प्राणायामकी साधना मुख्य होने से यह संहिता हठयोग के अन्तर्गत आती है। अन्त में हठयोग भी राजयोग में ही पर्यवसन्न है तथापि पातञ्जलि योग दर्शन से इस संहिताका राजयोग अलग है। पातञ्जलि मत द्वैतवादी है जबकि यह अद्वैतवादी है। जीवकी सत्ता ब्रह्म सत्ता से बिलकुल भी भिन्न नहीं है।

 

 

इड़ा पिंगला के प्रवाहमें मन वहिर्गति वाला रहता है। हठाभ्यास के द्वारा इन दोनों का ऐक्य सम्पादन करना ही इस योगका लक्ष्य है। जिस योग के विषय में लिखा जा रहा है, वह हठ योग के अन्तर्गत आता है। 'ह' एवं 'ठ' के ऐक्य होने पर आधार चक्र में स्थित कुण्डलिनी शक्तिका उद्बोध होकर प्राणापानकी एकता द्वारा नाद बिन्दु तक षड़ाधार चक्रोंका भेदन करके योगी परमतत्व का साक्षात्कार करता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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