गीता प्रवचन - विनोबा भावे हिन्दी पुस्तक | Gita Pravachan - Vinoba Bhave Hindi Book PDF

 


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गीता प्रवचन हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Gita Pravachan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गीता प्रवचन | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : विनोबा भावे | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सर्व सेवा संघ प्रकाशन, राजघाट, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 116 MB है | इस पुस्तक में कुल 298 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गीता प्रवचन" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Gita Pravachan | This book is authored/edited by : Vinoba Bhave | This book is published by : Sarv Seva Sangh Prakashan, Rajghat, Varanasi | PDF file of this book is of size 116 MB approximately. This book has a total of 298 pages. Download link of the book "Gita Pravachan" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
विनोबा भावेभक्ति, धर्म, समाज116 MB298



पुस्तक से : 

मेरे जीवन में गीताने जो स्थान पाया है, उसका मैं शब्दों वर्णन नहीं कर सकता। गीताका मुझ पर अनन्त उपकार है । रोज मैं उसका आधार लेता हूँ और रोज मुझे उससे मदद मिलती है । उसका भावार्थ जैसा मैं समझा हूँ, इन प्रवचनों में समझानेकी कोशिश की है। मैं तो चाहता हूँ कि यह अनुवाद हर एक घर में, जहाँ हिन्दी बोली जाती है, पहुँचे और घर-घर में इसका श्रवण, मनन और पठन हो।

 

मेरे गीता-प्रवचनों का हिन्दी अनुवाद हिन्दी बोलने वालों के लिए प्रकाशित हो रहा है, इससे मुझे खुशी होती है । ये प्रवचन कार्यकर्ताओं के सामने दिये गये हैं और इनमें आम जनता के उपयोग की दृष्टि रही है। इनमें तात्त्विक विचारों का आधार छोड़े बगैर, लेकिन किसी वाद में न पड़ते हुए, रोज के कामों की बातों का ही जिक्र किया गया है।

 

यहाँ श्लोकों के अक्षरार्थ की चिन्ता नहीं, एक-एक अध्याय के सार का चिन्तन है। शास्त्र-दृष्टि कायम रखते हुए भी शास्त्रीय परिभाषा का उपयोग कम से कम किया हैं। मुझे विश्वास है कि हमारे गाँव वाले मजदूर भाई-बहन भी इसमें अपना श्रम-परिहार पायेंगे।

 

 

गीता-प्रवचन में सकल जनोपयोगी परमार्थ का सुलभ विवेचन है । स्थितप्रज्ञ - दर्शन उसके और आगे का ग्रन्थ है, जिसमें वही विषय एक विशिष्ट भूमिका पर से कहा गया है। 'गीताई - चिन्तनिका' गीताई का सूक्ष्म अध्ययन करने वालों के लिए है। तीनों में मिलकर गीताके बारे में मुझे जो कहना है, वह संक्षेप में सांगोपांग कहा है। पुस्तकें लिख तो रखी हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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