ग्रह शांति पद्धति - शिवदत्त मिश्र हिन्दी पुस्तक | Graha Shanti Paddhati - Shiv Dutt Mishra Hindi Book PDF


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ग्रह शांति पद्धति हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Graha Shanti Paddhati Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : ग्रह शांति पद्धति | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : श्री शिवदत्त मिश्र | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री ठाकुर प्रसाद पुस्तक भण्डार, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 198 MB है | इस पुस्तक में कुल 408 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "ग्रह शांति पद्धति" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Graha Shanti Paddhati | This book is written/edited by : Shri Shiv Dutt Mishra | This book is published by : Shri Thakur Prasad Pustak Bhandar, Varanasi | PDF file of this book is of size 198 MB approximately. This book has a total of 408 pages. Download link of the book "Graha Shanti Paddhati" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री शिवदत्त मिश्रधार्मिक,ज्योतिष198 MB408



पुस्तक से : 

इसमें मूल के साथ ही अत्यंत सरल हिन्दी भाषा में तत्तत्कर्मों के क्रम का बड़ा सुन्दर ढंग से उल्लेख किया गया है, जो अभ्य पुस्तकोंमें उपलब्ध नहीं है। इस पुस्तक की सहायता से एक साधारण कर्मकाण्डी भी अच्छे ढंगसे अपने कृत्य में सफल हो सकता है। यह बात निश्चित है।

 

तात्पर्य यह है कि मनुष्यों को ग्रहोंके अनुकूलता के लिये उसका सविधि शान्ति अति आवश्यक है। इसके लिए ही प्रस्तुत पुस्तक ग्रहशान्ति पद्धति सर्वथा उपयोगी है। यद्यपि ग्रहशान्ति के अन्य संस्करण भी प्रकाशित हुए हैं, फिर भी प्रस्तुत पद्धति सर्वसाधारण लोगो के लिए भी बोधगम्य है।

 

हिन्दी टीका के साथ अति सरल शैली में पद्धति का निर्माण तथा मन्त्रानुक्रमणिका आदि का उल्लेख ही इस पुस्तककी विशेषता है, जो अब तक की प्रकाशित अन्य पुस्तकों में अनुपलब्ध हैं। प्रस्तुत पद्धति के द्वारा सर्वसाधारण विद्वान् भी समस्त वैदिक संस्कार एवं शान्तिकर्म आदि कार्यों को भली भाँति करा सकते हैं।

 

 

सबसे पहले देवताओं का हवन पूजन करे। फिर अग्निका पूजन करे और बचे हुए शाकल का एक साथ ही स्विष्टकृत् हवन कर केवल शुद्ध घृत की नवाहुति प्रदान करे। उसके पश्चात दिगपालों के निमित्त दीप सहित बलिदान करे तथा सूर्यादि अन्य ग्रहोंके लिए बलिदान देकर प्रधान देवताके निमित्त बलीप्रदान के बाद क्षेत्रपाल के लिए अन्य आहुति देवे।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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