कबीर मंशूर - स्वामी परमानंद हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Kabir Manshoor - Swami Parmanand Hindi Book PDF


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कबीर मंशूर हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kabir Manshoor Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कबीर मंशूर | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : स्वामी परमानंद जी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गंगा विष्णु श्रीकृष्णदास, बम्बई  | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 460 MB है | इस पुस्तक में कुल 1371 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कबीर मंशूर" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kabir Manshoor | This book is written/edited by : Swami Parmanand Ji | This book is published by : Gangavishnu Shrikrishnadas, Bombay | PDF file of this book is of size 460 MB approximately. This book has a total of 1371 pages. Download link of the book "Kabir Manshoor" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी परमानंद जीधार्मिक460 MB1371



पुस्तक से : 

सृष्टि रचना अन्य दर्शनों की तरह भिन्न प्रकार ही है। कबीर साहिब के हंस सत्य साकेत लोकवासी महाराजा विश्वनाथ सिंहजीदेव रीवा नरेश ने मंगलपर टीका की है, उसमें सृष्टि प्रकरण बड़े सावधानी के साथ समझाया गया है कि पहिले सत्यलोकवासी भगवान् अकेले थे।

 

इस बातको जेहन में अंटाना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि दुनियामें खेती होने के जो भी प्रमाण मिले हैं, उनका समय नौ हजार साल से ज्यादा पुराना नहीं है। इसे एक हजार साल और पहले खींच ले जाएं तो भी यही कहना होगा कि ये रोटियां खेती शुरू होनेसे चार हजार साल पहले पकी थीं।

 

इसमें उपयोग किया गया दाना बाजरा या गेहूं की किसी अतिप्राचीन किस्म के हो सकते हैं। कुछ अवशेष कंद जैसी वनस्पति के भी हो सकते हैं। यह इलाका नटूफियन सभ्यता से जोड़कर देखा जाता है, जिसका समय साढ़े बारह हजार साल से साढ़े नौ हजार साल पहले का माना जा रहा है।

 

 

क्या रोटियां गीले या नम अनाजको सीधे पत्थरों से कूटकर भी बनाई जाती रही होंगी? अपने जीवन के एक ठीक-ठाक हिस्से में मैंने घर के पिसे आटेकी रोटियां खाई हैं। बिजलीसे चलने वाली चक्की शुरू होने के बाद सिर्फ पांच से दस सालों में उस दौरको याद करना भी मुश्किल हो गया। टेक्नॉलजी के बल पर हम हजार साल पुरानी पकी रोटी को भी याद कर पा रहे हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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