कंकाल मालिनी तंत्र हिन्दी पुस्तक | Kankal Malini Tantra Hindi Book PDF

  

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कंकाल मालिनी तंत्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kankal Malini Tantra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कंकाल मालिनी तंत्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : एस. एन. खण्डेलवाल | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : भारतीय विद्या संस्थान, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 19 MB है | इस पुस्तक में कुल 102 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कंकाल मालिनी तंत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kankal Malini Tantra | This book is authored by : S. N. Khandelwal | This book is published by : Bharatiya Vidya Sansthan, Varanasi | PDF file of this book is of size 19 MB approximately. This book has a total of 102 pages. Download link of the book "Kankal Malini Tantra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
एस. एन. खण्डेलवालतंत्र मंत्र19 MB102



पुस्तक से : 

इस तंत्र के प्रथम पटल में वर्णमाला की व्याख्या अंकित की गई है। इस तंत्र के अनुसार अ से अः पर्यन्त स्वर वर्ण सत्त्वमय है। क से थ पर्यन्त वर्णसमूह को रजोमय कहा गया है तथा द से क्ष तक के वर्णसमूह को तमोमय कहा गया है।

 

अकारादि क्षकारान्त वर्ण शिवशक्ति स्वरूप है। यह पचास वर्ण समष्टि सनातन ब्रह्मरूप से विद्यमान है।  ज्ञान के बिना सिद्धि संभव नहीं है। हे शुभे ! इन्हें गुणत्रय रूप वर्णसागर कहा जाता है। अकार से लेकर चण्डिका पर्यन्त वर्णसमूह सत्वगुणयुक्त होते है।

 

इसका पंचम पटल महाकाली के साधकों के लिये लाभकारी है। इसमें पुरश्चरण विधान प्रातः कृत्य, स्नान, सन्ध्या, तर्पण, गणपति, भैरव, न्यासादि का भी उपदेश दिया गया है। समापन करते हुये डाकिनी-राकिनी देवियों का बीजोद्धार भी इस तंत्रकी विशेषता का परिचायक है।

 

 

व्योमास्य हकार तथा विदारी अर्थात् उकार, इन दो वर्णों को धम्रभैरवीं के साथ युक्त करके नादविन्दु के साथ युक्त करना चाहिये। यह हुँ मन्त्र में परिणत हो जाता है। हे वन्दिता देवी ! इस मंत्र को क्रोधबीज कहते हैं। यह कालके प्रभाव को भी दूर कर देता हैव्योमास्य ह् कार, क्षतज रुकार, डाकिनी अर्थात् औे कार। हकार जब औ कार तथा नादविन्दू से संयुक्त होता है, तब ज्योतिमंन्त्र ह्रीं प्रकट हो जाता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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