कारक दर्शनम - हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Karak Darshanam - Hindi Book PDF

  


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कारक दर्शनम हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Karak Darshanam Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कारक दर्शनम | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ श्री कलानाथ झा | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 79 MB है | इस पुस्तक में कुल 219 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कारक दर्शनम" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Karak Darshanam | This book is authored/edited by : Dr Shri Kalanath Jha | This book is published by : Chaukhambha Vidya Bhawan, Varanasi | PDF file of this book is of size 79 MB approximately. This book has a total of 219 pages. Download link of the book "Karak Darshanam" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ श्री कलानाथ झासंस्कृत, व्याकरण, साहित्य 79 MB219



पुस्तक से : 

प्रतिपाद्य विषयको अधिक स्पष्ट करने के हेतु पादटिप्पणियों का आवश्यकतानुसार सन्निवेश करके तथा सूत्र-वात्तिक प्रयोगोंकी अनुक्रमणी परिशिष्टमें देकर मैंने आधुनिकता लानेकी चेष्टा की है। व्याख्या महाभाष्य, परिभाषेन्दुशेखर, लघुमञ्जूषा तथा तत्त्वबोधिनी और बालमनोरमा ऐसी सिद्ध, सुविख्यात टीकाओं पर आधारित है।

 

एम० ए० संस्कृतकी परीक्षा पास करने के बाद प्राध्यापक होने पर व्याकरण पर कुछ लिखने की इच्छा जगी - केवल विद्यार्थियोंके लाभ के लिये, इससे अधिक और कुछ नहीं । संस्कृत व्याकरणमें मुनियों ने ‘इससे अधिक' कुछ लिखनेको अवसर ही कहाँ छोड़े हैं?

 

बातों को साफ-साफ लिखने के फेरे में पुस्तकाकारमें कुछ वृद्धि हो गई है, पर मैं पाठककी समझ के मूल्य पर संक्षेप अच्छा नहीं समझता। अधिक लोकप्रिय बनाने के लिये जकड़ी संस्कृतनिष्ठ भाषासे विचारोंकी मुक्ति दिलाना भी मेरा प्रयोजन रहा है। विश्वास है पुस्तक न केवल पाठ्यके रूपमें, अपितु साधारण ज्ञानकी दृष्टिसे भी उपयोगी होगी।

 

 

व्याख्याक्रममें फक्किकाओं को नहीं छोड़ा है - प्रयोगकी दृष्टिसे उनका महत्त्व हो या न हो, विचारकी दृष्टि से वे महत्त्वपूर्ण हैं ही। पुनः इस तरह की सरल भाषामें उन्हें समझानेका प्रयास हुआ है कि उनकी विभीषिका प्रायः नष्ट हो गई है। किंतु अपने श्रमको तबतक मैं सफल नहीं समझूंगा जबतक इसे पढ़कर असंस्कृतज्ञ - संस्कृतानुरागी भी आनंद न लें।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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