कर्म योग - स्वामी विवेकानंद हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Karm Yog - Swami Vivekananda Hindi Book PDF


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कर्म योग हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Karm Yog Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कर्म योग | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : स्वामी विवेकानंद | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सरस्वती पुस्तक भंडार, लखनऊ | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 4 MB है | इस पुस्तक में कुल 151 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कर्म योग" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Karm Yog | This book is written/edited by : Swami Vivekananda | This book is published by : Saraswati Pustak Bhandar, Lucknow | PDF file of this book is of size 4 MB approximately. This book has a total of 151 pages. Download link of the book "Karm Yog" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी विवेकानंदधार्मिक 4 MB151



पुस्तक से : 

कर्म-योग का अर्थ शायद अब आपकी समझ में आ गया होगा। मरते हुये भी बिना किसी शर्त या सवाल-जवाब के दूसरों की मदद करना। सैकड़ों बार धोखा खाने के पश्चात भी चूँ न करना। हम क्या कर रहे हैं, न ही इसका विचार करना।

 

जो भी शक्ति उनके पास है, उसे और भी बड़ा करके दिखाना चाहते हैं। दया तो स्वर्ग ही है, अच्छे होने के लिये हम सबको दयालु होना पड़ेगा। न्याय, शक्ति और सत्य तक हम दया पर निर्भर रह सकते हैं। कर्म के फलकी प्रत्याशा हमारी आध्यात्मिक उन्नतिमें बाधक बनता है।

 

शिक्षा और उपदेश देने के बदले लोग उन्हें जो कुछ थोड़ा-बहुत दे देते थे, वही उनकी जीविका का साधन था। एक समय उस देश में तीन साल तक अकाल पड़ गया। फिर उन लोगो पर पर सबसे अधिक विपत्ति आई। पाँच दिन बीत गये लेकिन उनके परिवार में किसी को भी अन्न का एक दाना भी नही मिला।

 

 

वह सोचता है कि परिस्थितियों के हिसाब से ऐसा करना उचित है, कभी सोचता है की नहीं है। कर्त्तव्य संबंधी लोगो की साधारण धारणा यह है कि कर्त्तव्य-प्रिय मनुष्य अपने आत्मा की आज्ञा अनुसार कार्य करता है। परन्तु उस कर्त्तव्य का निश्चय कैसे होता है ? यदि किसी ईसाईके सामने गोमांसका एक टुकड़ा हो और वह उसकी जीवन रक्षा के लिये उसका व्यवहार न करे तो वह अवश्य ही अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा का बोध करेगा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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