कठिनाइयों से डरिए नहीं लड़िए - श्रीराम शर्मा आचार्य | Kathinaiyon se Dariye Nahin Ladiye - Shriram Sharma Acharya PDF

Kathinaiyon se Dariye Nahin Ladiye - Shriram Sharma Acharya PDF


कठिनाइयों से डरिए नहीं, लड़िए हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kathinaiyon se Dariye Nahin Ladiye Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कठिनाइयों से डरिए नहीं लड़िए | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2.5 MB है | इस पुस्तक में कुल 33 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कठिनाइयों से डरिए नहीं, लड़िए" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kathinaiyon se Dariye Nahin Ladiye | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Press, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 2.5 MB approximately. This book has a total of 33 pages. Download link of the book "Kathinaiyon se Dariye Nahin Ladiye" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्रीराम शर्मा आचार्यप्रेरक, मनोविज्ञान, अध्यात्म 2.5 MB33



पुस्तक से : 

आज उँगलीके इशारे पर चलने वाले अनेकों अनुयायी हैं तो कल सुख-दुःख की पूछने वाला एक भी नहीं रहता। रंक कहाने वाला एक दिन धनपति बन जाता है तो धनवान निर्धन बन जाता है। जीवनमें इस तरह की परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आते-जाते रहना नियति चक्र का सहज स्वाभाविक नियम है। इनसे बचा नहीं जा सकता, इन्हें टाला नहीं जा सकता।

 

कठिनाइयाँ जीवनकी एक सहज स्वाभाविक स्थिति हैं, जिन्हें स्वीकार करके मनुष्य अपने लिए उपयोगी बना सकता है और कठिनाइयों को जीवन का विरोधी भाव मानकर उनमें दुखी और परेशान होकर मनुष्य अपनी ही हानि भी कर लेता है। कठिनाइयों में रोना, हार मान लेना, निराशा और अवसाद से ग्रस्त होना अपने विश्वास के मार्ग को छोड़ बैठना ही है।

 

नियति के समय अजेय एवं अपरिवर्तनीय हैं। मानव जीवनमें होने वाले परिवर्तन भी इसी के अंतर्गत होने से ध्रुवसत्य हैं। जीवन में आने वाली कठिनाइयों की जड़ में भी यही है। इस तथ्य को हृदयंगम कर कठिनाइयों में भी संतुष्ट, संतुलित रहने वालों की जीवन यात्रा सहज गति में चलती रहती है।

 

 

सृष्टि-संचालनके सार्वभौम नियमों के अनुसार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन होते रहना एक स्वाभाविक बात है। दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है। वर्षा के बाद शरद और उसके पश्चात ग्रीष्मऋतुका आना भी निश्चय प्रायः ही होता है। सूर्य, चंद्र एवं अन्य ग्रह भी एक नियमबद्ध गतिमें चलते हैं। इसी तरह मानव जीवन भी इस सार्वभौम नियमोंके अंतर्गत सदैव एक-सा नहीं रहता।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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