काव्य शास्त्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kavya Shastra Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : काव्य शास्त्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. यतीन्द्र तिवारी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सरस्वती प्रकाशन | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 130 MB है | इस पुस्तक में कुल 284 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "काव्य शास्त्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Kavya Shastra | This book is authored by : Dr Yatindra Tiwari | This book is published by : Saraswati Prakashan | PDF file of this book is of size 130 MB approximately. This book has a total of 284 pages. Download link of the book "Kavya Shastra" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के संपादक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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डॉ. यतीन्द्र तिवारी | काव्य | 130 MB | 284 |
पुस्तक से :
इसी प्रकार ध्वनिवादियों ने अलंकार ध्वनि भेद की कल्पना करके अलंकार सिद्धान्तके सारे वैभव को हस्तगत कर लेना चाहा। दूसरी ओर अलंकारवादियों ने ध्वनि के ही विभिन्न रूपों को 'गूढार्थ-प्रतीतिमूलक' अलंकारोंकी संज्ञा दे दी।
इस रस सिद्धान्त के अनुसार काव्य का लक्ष्य पाठक या श्रोताकी भावनाओं को उद्वेलित करके उसे आनन्द प्रदान करना है इसी आनन्द को साहित्य शास्त्रीय शब्दावलीमें 'रस' कहते हैं। यह उद्देश्यपूर्ति तभी सम्भव है, जब सारी रचना के केन्द्र में एक स्थायीभाव स्थित रहे।
जहाँ तक प्राचीन पाश्चात्य समीक्षाका प्रश्न है उसका भी स्वतन्त्र रूपसे विकास नहीं हुआ। ईसा की चौथी शताब्दी पूर्व तक इसके संकेत मिलते हैं। यद्यपि ये संकेत समीक्षाका सम्यक निदर्शन तो नहीं करते लेकिन परवर्ती युग में इनकी विविध रूपों में व्याख्या की गई है।
भारतेन्दु ने अपने 'नाटक' ग्रन्थमें एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए प्राचीन सिद्धान्तोंके नवीकरण पर बल दिया। अपने भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य-शास्त्र के समन्वय की ओर संकेत दिया। यद्यपि इनमें मौलिकता का अभाव है, किन्तु इन्होंने रीति कालीन दृष्टिकोण, परम्परा, और शैलीको त्यागकर नये दृष्टिकोण और नयी शैली का प्रवर्तन करके स्तुत्य कार्य किया।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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