कुण्डलिनी महाशक्ति एवं उसकी संसिद्धि - श्रीराम शर्मा आचार्य | Kundalini Mahashakti evam Uski Sansiddhi - Shriram Sharma Acharya PDF

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कुण्डलिनी महाशक्ति एवं उसकी संसिद्धि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kundalini Mahashakti evam Uski Sansiddhi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कुण्डलिनी महाशक्ति एवं उसकी संसिद्धि | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 5 MB है | इस पुस्तक में कुल 105 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कुण्डलिनी महाशक्ति एवं उसकी संसिद्धि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kundalini Mahashakti evam Uski Sansiddhi | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Vistar Trust, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 5 MB approximately. This book has a total of 105 pages. Download link of the book "Kundalini Mahashakti evam Uski Sansiddhi" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य योग, साधना, धर्म 5 MB105



पुस्तक से : 

भारतीय योगसाधन का मुख्य उद्देश्य जीवनमुक्त स्थितिको प्राप्त करना है। अभी तक प्राणियोंके विकास को देखते हुए सबसे ऊँची श्रेणी मनुष्य की है, क्योंकि उसको विवेक और ज्ञानके रूप में ऐसी शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनसे वह जितना चाहे ऊँचा उठ सकता है और कैसा भी कठिन कार्य हो, उसे अपनी बहिरंग शक्तिसे पूरा कर सकता है।

 

जो लोग अपने जीवन-ध्येय को प्राप्त करने के लिए अपनी निर्बलताओं अथवा त्रुटियोंको समझकर, उनको दूर करने के लिए योगमार्ग का आश्रय ग्रहण करते हैं, वे धीरे-धीरे अपनी निर्बलताको सबलता में बदल देते हैं और न केवल सांसारिक विषयोंमें ही अपने मनोरथों को सफल करते, वरन आध्यात्मिक क्षेत्रमें भी ऊँचे उठते हैं।

 

तेजस्वरूप कुंडलिनी जाग्रत होने पर इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्तिको प्रखर बनाती है। संपूर्ण शरीर पर उसका प्रभाव दीखने लगता है। प्रसुप्त मंत्रमय जगत जाग्रत् हो उठता है। विश्वात्मज्ञान जाग्रत होता है। विश्व का प्रवर्तन करने वाली कुंडलिनी साधकको अनेक गुण-शक्ति संपन्न बना देती है।

 

 

योगियों के हृदय-देशमें वह नृत्य करती रहती है। यही सर्वदा प्रस्फुटित होने वाली विद्युत रूप महाशक्ति सब प्राणियोंका आधार है। इसका आशय यही है कि कुंडलिनी शक्तिके न्यूनाधिक परिणाम में चैतन्य हुए बिना मनुष्य की प्रतिभा का विकास नहीं होता। कुंडलिनी आत्मशक्तिकी प्रकट और प्रखर स्फुरणा है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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