कुण्डलिनी साधना से प्रज्ञा और प्रखरता का जागरण - श्रीराम शर्मा आचार्य | Kundalini Sadhana se Pragya aur Prakharta ka Jagaran - Shriram Sharma Acharya PDF

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कुण्डलिनी साधना से प्रज्ञा और प्रखरता का जागरण हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kundalini Sadhana se Pragya aur Prakharta ka Jagaran Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कुण्डलिनी साधना से प्रज्ञा और प्रखरता का जागरण | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 0.1 MB है | इस पुस्तक में कुल 8 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कुण्डलिनी साधना से प्रज्ञा और प्रखरता का जागरण" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kundalini Sadhana se Pragya aur Prakharta ka Jagaran | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Press, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 0.1 MB approximately. This book has a total of 8 pages. Download link of the book "Kundalini Sadhana se Pragya aur Prakharta ka Jagaran" has been given further on this page from where you can download it for free.


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श्रीराम शर्मा आचार्यधर्म, योग, साधना 0.1 MB8



पुस्तक से : 

कलात्मक प्रयोजनों में संलग्न होने से उसके भौतिक लाभ मिल सकते है। अध्यात्म क्षेत्रमें उसे भाव संवेदना के लिए भक्ति भावना के रूप में तथा प्रबल पुरुषार्थकी तरह तपोमयी योग साधना में लगाया जा सकता है। दोनों का समन्वय कुण्डलिनी जागरण प्रक्रिया में समन्वित पद्धति के रूप में किया जा सकता है।

 

दोनोंमें एक तत्त्व प्रधान रहने से ढर्रा तो चलता रहता हैं, पर एकांगीपन बना रहता है। नारी जैसे कोमलता, सहृदयता, कलाकारिता, भावात्मक तत्त्व का नर में जितना अभाव होगा उतना ही वह कठोर, नीरस, निष्ठुर रहेगा और अपनी बलिष्ठता, मनस्विता के पक्ष के सहारे क्रूर ककश बनकर अपने और दूसरोंके लिए अशान्ति ही उत्पन्न करता रहेगा।

 

शक्ति कुण्डलिनी, शिव सहस्रार दोनों का संयोग कुण्डलिनी जागरण कहलाता है। यह पुण्य प्रक्रिया सम्पन्न होने पर अन्तरङ्ग ऋतम्भरा प्रज्ञासे और बहिरङ्ग प्रखरता से भर जाता है। प्रगति के पथ पर इन्हीं दो चरणों के सहारे जीवन यात्रा पूरी होती है और चरम लक्ष्यकी पूर्ति सम्भव बनती है।

 

 

चेतना के उच्चस्तरीय घटक मूलाधार और सहस्रारके रूप में विलग पड़े रहे, तभी तक अन्धकारकी, नीरस गतिहीनताकी स्थिति रहेगी। मिलन का प्रतिफल सम्पदाओं और विभूतियोंके ऋद्धि और सिद्धि के रूप में सहज ही देखा जा सकता है। इन उपलब्धियोंकी अनुभूतिमें आत्मा-परमात्माका मिलन होता है और उसकी सम्बेदना ब्रह्मानन्दके रूप में होती है, इस आनन्दको विषयानन्दसे असंख्य गुने उच्चस्तरका माना गया है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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