महामंत्र गायत्री हिन्दी पुस्तक | Mahamantra Gayatri Hindi Book PDF


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महामंत्र गायत्री हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mahamantra Gayatri Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : महामंत्र गायत्री | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : बुद्धि प्रकाशदेव | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : रणधीर प्रकाशन, हरिद्वार | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 52 MB है | इस पुस्तक में कुल 100 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "महामंत्र गायत्री" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Mahamantra Gayatri | This book is written/edited by : Buddhi Prakashdev | This book is published by : Randhir Prakashan, Haridwar | PDF file of this book is of size 52 MB approximately. This book has a total of 100 pages. Download link of the book "Mahamantra Gayatri" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
बुद्धि प्रकाशदेवधार्मिक52 MB100



पुस्तक से : 

ईश्वर ने करुणावश में जीवों के कल्याण के लिए वेदों का उपदेश दिया। हालांकि वेदों में अनेकों प्रकार के कर्म और उपासनाओंका वर्णन मिलता है फिर भी द्विजातियों के लिए नित्य सुख प्राप्ति और सर्वथा दुःख की निवृत्ति रूप मोक्ष का मार्ग गायत्री मंत्रको ही माना जाता है।

 

प्राणी की समस्त चेष्टाएँ और विवेक सम्पन्न मनुष्य का समस्त प्रयत्न इसी शाश्वत सुख की ओर गतिशील है। भूतप्रेत, गन्धर्व, यक्ष और किन्नर की भी प्रवृत्ति का लक्ष्य इसी शाश्वत सुख की प्राप्ति और दुःख की निवृत्तिकी ओर गतिशील है अर्थात् जीव का यही एक मात्र लक्ष्य है।

 

वाक ही ऋक है और साम ही प्राण है। ऋक और साम के कारण रूप वाक और प्राणका ग्रहण करने से सम्पूर्ण ऋक और सम्पूर्ण सामका ग्रहण अन्तर्भाव हो जाता है और सम्पूर्ण ऋक और सम्पूर्ण साम का अन्तर्भाव हो जाने पर पर ऋक और सामसे सिद्ध होने वाले कर्मोंका भी अन्तर्भाव हो जाता है।

 

 

आत्मा मध्य अक्षर है। अक्षर का आश्रय लेकर जिसका अभिधान की प्रधानता से वर्णन किया जाय उसे मध्यक्षर कहते हैं। लेकिन वह अक्षर कौन है? वह ओंकार है। यह ओंकार पादरूप से विभिक्त करने पर अधिमात्र यानी मात्राको आश्रय करके वर्तमान रहता है, इसलिये इसे अधिमात्रा कहा जाता हैं। क्योंकि आत्मा के जो पाद हैं वो ही ओंकारकी मात्राएँ अकार और मकार हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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