महापंडित राहुल सांकृत्यायन - गुणाकर मुले पीडीएफ | Mahapandit Rahul Sankrityayan - Gunakar Mule PDF


Mahapandit-Rahul-Sankrityayan-Gunakar-Mule-PDF


महापंडित राहुल सांकृत्यायन हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mahapandit Rahul Sankrityayan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : महापंडित राहुल सांकृत्यायन | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : गुणाकर मुले | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 12 MB है | इस पुस्तक में कुल 238 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "महापंडित राहुल सांकृत्यायन" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Mahapandit Rahul Sankrityayan | This book is written by : Gunakar Mule | This book is published by : National Book Trust, India | PDF file of this book is of size 12 MB approximately. This book has a total of 238 pages. Download link of the book "Mahapandit Rahul Sankrityayan" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गुणाकर मुलेजीवनी12 MB238



पुस्तक से : 

उसी दिन से राहुल पंथकी मेरी शिक्षा प्रारंभ हुई। करीब दो साल तक शायद ही ऐसा कोई दिन बीता होगा जब, उपदेश या शिक्षा के तौर पर, 'जातक' की कोई कहानी सुनने को न मिली हो। उस समय तक छपी राहुलजीकी प्रायः सभी पुस्तकें वहां मौजूद थीं।

 

प्लेग चल रहा था। तभी गर्मी की छुट्टी हुई और केदार पन्दहा पहुंच गया। एक दिन नाना के ससुराल के एक सज्जन एकाएक तिलक चढ़ाने पहुंच गये। नाना ने केदारको चुपके से कनैला भेज दिया। तिलक चढ़ाने वाले दूसरे दिन खुद वहां जा धमके। काफी बहसा बहसी के बाद देर रातको तिलक चढ़ा।

 

बछवल में खेल-कूद की आजादी थी। संस्कृत की पढ़ाई में भी केदारका मन लग गया। मगर एक महीना भी नहीं बीता था कि पन्दहा पहुंचने का पैगाम आ गया। पहली बार संस्कृतसे जुड़ा नाता भी जल्दी ही टूट गया। किन्तु इसी बछवल यात्रा में लंबे समय के लिए एक स्थायी संबंध भी स्थापित हो गया।

 

 

घर से चिट्ठी-पत्री शुरू हो गयी थी। नाना बार बार लौट आने के लिए खत लिख रहे थे। आखिरकार केदार का मन भी घर लौटने के लिए उतावला हो गया। तब तक पैसे भी आ गये थे। एक दिन पाठकजी ने केदारको हावड़ा स्टेशन पर गाड़ी में बिठा दिया। चार महीने कलकत्ता रहकर केदार वापस अपने घर लौटा। एक सालकी पढ़ाई बरबाद हो गई थी। निजामाबाद के स्कूलमें फिर से नाम लिखाया।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

"महापंडित राहुल सांकृत्यायन" हिन्दी पुस्तक को सीधे एक क्लिक में मुफ्त डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें |

To download "Mahapandit Rahul Sankrityayan" Hindi book in just single click for free, simply click on the download button provided below.


Download PDF (12 MB)


If you like the book, we recommend you to buy it from the original publisher/owner.



यदि इस पुस्तक के विवरण में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से संबंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उस सम्बन्ध में हमें यहाँ सूचित कर सकते हैं