मन की शक्तियां तथा जीवन गठन की साधना - स्वामी विवेकानंद हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Man Ki Shaktiyan Tatha Jeevan Gathan Ki Sadhana - Swami Vivekananda Hindi Book PDF


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मन की शक्तियां तथा जीवन गठन की साधना हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Man Ki Shaktiyan Tatha Jeevan Gathan Ki Sadhana Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मन की शक्तियां तथा जीवन गठन की साधना | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : स्वामी विवेकानंद | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री रामकृष्ण आश्रम, नागपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 4 MB है | इस पुस्तक में कुल 47 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "मन की शक्तियां तथा जीवन गठन की साधना" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Man Ki Shaktiyan Tatha Jeevan Gathan Ki Sadhana | This book is written/edited by : Swami Vivekananda | This book is published by : Shri Ramakrishna Ashram, Nagpur | PDF file of this book is of size 4 MB approximately. This book has a total of 47 pages. Download link of the book "Man Ki Shaktiyan Tatha Jeevan Gathan Ki Sadhana" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी विवेकानंदआध्यात्मिक4 MB47



पुस्तक से : 

आक्सिजन, हाइड्रोजन और कार्बन किस अनुपात में मिलकर ऐसा परिणाम देते हैं? कितने परमाणु किस दशा में मिलकर ऐसा कार्य करते हैं? कितन जीव कोष इस रहस्यमय व्यक्तित्व को समझाने में समर्थ हैं? फिर भी हम देखते हैं कि यह बात सच है।

 

जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि दूसरों पर प्रभाव जमाने के कार्य में मनुष्यका व्यक्तित्व केवल दो तिहाई तथा उसकी बुद्धि और भाषा मात्रा एक तिहाई काम करते हैं। सच्चा मनुष्यत्व  वह वस्तु है जो हम पर प्रभाव डालती है। हमारे कर्म हमारे व्यक्तित्व के बाह्य आविष्कार मात्र हैं।

 

योग विज्ञान यह दावा करता है कि उसने उन विधियों का पता लगा लिया है जिनसे व्यक्तित्व आकर्षक बनाया जा सकता है और कोई भी व्यक्ति निश्चित रूप से उन नियमोंका पालन कर अपने व्यक्तित्व को शक्तिसम्पन्न बना सकता है। व्यक्तित्व की यह शक्तिसम्पन्नता सभी शिक्षणका रहस्य है और व्यवहार जगत की एक प्रधान वस्तु है।

 

 

यदि कोई अनुसंधान उन तत्वों को हमारी पहुँच के अन्दर लाए जो स्थूलमें उत्पन्न होने वाली क्रिया के कारण हैं तो यह क्रिया हमारी इच्छानुगामिनी बन सकती है। पानी की सतह से जो बुलबुला ऊपर उठता है उसे हम तब तक नहीं देख पाते है जब तक वह पानी की ऊपरी सतह पर अपना स्थूल आकार नहीं ग्रहण कर लेता। उसी प्रकार हम विचारों को भी उनकी सूक्ष्मता के कारण नहीं देख पाते जब तक कि वे विकसित नहीं हो जाते।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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