मानव की कहानी हिन्दी पुस्तक | Manav Ki Kahani Hindi Book PDF

  

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मानव की कहानी हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Manav Ki Kahani Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मानव की कहानी | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : राहुल सांकृत्यायन | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 19 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "मानव की कहानी" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Manav Ki Kahani | This book is authored by : Rahul Sankrityayan | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 19 pages. Download link of the book "Manav Ki Kahani" has been given further on this page from where you can download it for free.


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राहुल सांकृत्यायनकहानी1 MB19



पुस्तक से : 

वे फलों और जड़ों को बहुत ढूंढ़ते थे। कुछ को सुखाकर वही गुफा में रख लिया करते थे। उस समय बड़ी अच्छी बात यह थी कि औरत-मर्द, बूढ़े बच्चे सभी साथ रहने लायक काम करते और साथ ही खाते थे। कोई चीज बंटी नहीं होती थी।

 

घर तो उनका कोई था नहीं। पेड़ के नीचे रहते थे। बरसात से बचने के लिए कुछ नहीं था। पहले भीग जाते फिर शरीर सूख जाता। एक दिन अम्मा ने छिपे रहकर एक खरगोश पर पत्थर चला दिया। पत्थर लगते ही वह वहीं उछलकर ठण्डा हो गया।

 

मैंने पहले ही लिखा था कि वे लोग अकेले नहीं रहते थे। जब जंगल बाघ-शेर-हाथी- चीता-भालू से भरा हुआ होता था, उस समय आदमी भले अकेले थोड़े ही रहना चाहेगा। वे कभी-कभी हड्डी, लकड़ी या पत्थर के हथियारों से बरसातमें गहरा गड्ढा खोद देते।

 

 

बूढ़ी दादी से पूछने पर उन्होंने कहा कि आधा जल जाए तो बाकी लूलू को दें देना। यह तो देवता का प्रसाद होगा। लूलू को प्रसाद मिला तो उसने चुपके से लूलो को दे दिया। लूली ने फिर दूसरी लड़कियों को भी बुला लिया। उसने कहा- 'देवता का प्रसाद अकेले थोड़े खाते है ! हम सब मिलकर खाएंगे। बुखार हल्का था, पर फिर भी मुंह का स्वाद बिगड़ गया था। लूलू को न फल अच्छे लगते थे, न गोश्त और न ही मधु।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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