माया तन्त्र हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Maya Tantra Hindi Book PDF


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माया तन्त्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Maya Tantra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : माया तन्त्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. रूपेश कुमार चौहान | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखंबा कृष्णदास अकादमी, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 138 MB है | इस पुस्तक में कुल 128 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "माया तन्त्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Maya Tantra | This book is written/edited by : Dr Rupesh Kumar Chauhan | This book is published by : Chaukhamba Krishnadas Akadami, Varanasi | PDF file of this book is of size 138 MB approximately. This book has a total of 128 pages. Download link of the book "Maya Tantra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. रूपेश कुमार चौहानतंत्र - मंत्र138 MB128



पुस्तक से : 

अथर्ववेद में और अधिकांश पुराणों में हमे तन्त्रविद्याका परिचय प्राप्त होता है। अतः तन्त्रविद्या अत्यधिक प्राचीन नहीं है। रुद्रयामल तन्त्र में ऐसा कहा गया है कि यह महाविद्या वशिष्ठ ऋषि के समक्ष प्रकट हुई थी। उसने इसे जानने के लिये वशिष्ठ से बुद्ध के पास जानेको कहा।

 

समन्त का अर्थ है- सम्यक् प्रकारसे अन्त तक, जो कि पूर्णकी पराकाष्ठा है तथा गम् धातु तो जानने के अर्थ वाली है ही। इस प्रकार आगम शब्द का अर्थ हुआ जिसके द्वारा सम्यक् प्रकारसे आदि से अन्त तक विशिष्ट क्रम तत्त्व विषय अथवा तथ्य तक पहुंचा जा सके, उसे आगम कहा जा सकता है।

 

तन्त्र साहित्य कोई सामान्य साहित्य नहीं है। इसमें हजारों लाखों ग्रन्थ आते हैं। असंख्य ग्रन्थ तो अभी भी संग्रहालयों या मठोंमें पाण्डुलिपि के रूपमें रखे हुए हैं, तो वही अनेकों ग्रन्थ यवन शासकोंकी क्रोधाग्नि में सदा के लिये जलकर विलुप्त हो गये। इसका प्रमाण नालन्दा विश्वविद्यालय में ग्रन्थोंकी भस्म दे रही है।

 

 

ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता कि तन्त्र साहित्य निराधार है। इसमें उपनिषदों की तरह ही ब्रह्मचिन्तन है, साथ ही इनमें आगम और निगम परम्पराका पालन किया गया है। आगम को तन्त्राम्नाय और निगम को वेदाम्नाय कहा गया है। इन ग्रन्थोंमें पार्वती और शिव के बीच संवाद है। पार्वतीजी भगवान शिव से प्रश्न करती हैं और शिव उनका उत्तर देते हैं। पार्वती प्रश्न करती हैं तो शिव उनका उत्तर देते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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