मुक्तांगन - एक व्यसन मुक्ति केंद्र की कहानी हिन्दी पुस्तक | Muktangan - Ek Vyasan Mukti Kendra Ki Kahani Hindi Book PDF

  

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मुक्तांगन - एक व्यसन मुक्ति केंद्र की कहानी हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Muktangan - Ek Vyasan Mukti Kendra Ki Kahani Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मुक्तांगन - एक व्यसन मुक्ति केंद्र की कहानी | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. अनिल अवचट | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB है | इस पुस्तक में कुल 194 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "मुक्तांगन - एक व्यसन मुक्ति केंद्र की कहानी" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Muktangan - Ek Vyasan Mukti Kendra Ki Kahani | This book is authored by : Dr Anil Avachat | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 2 MB approximately. This book has a total of 194 pages. Download link of the book "Muktangan - Ek Vyasan Mukti Kendra Ki Kahani" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. अनिल अवचटप्रेरक2 MB194



पुस्तक से : 

मुझे लगा कि उसे याद करनेमें मुझे बहुत आनंद आएगा। अमरीका प्रवास का एक बहुत अच्छा पक्ष यह भी था कि कई भूली-बिसरी कहानियां, जो मैंने कभी किसीको नहीं सुनाई थीं अब वो सब धीरे-धीरे मुझे याद आने लगीं। 

 

मैनें विषय वस्तुको अध्यायों में नहीं बांटा और ही उनके लिए अलग श्रेणियां बनायीं। कहानी यूं ही आगे बढ़ती गई और मैं उसका पीछा करता रहा। मैंने एक झोंकमें पूरी कहानी लिख डाली और उसके बाद मैंने उसे अपने करीबी लोगों को पढ़नेके लिए दिया।

 

जब मैं मुक्तांगन में होता हूं तो वहां के बच्चों को मुक्तांगन के जन्मकी कहानी सुनाता हूं। अगर मुझे किसी पुराने मरीजकी कोई बात याद आती है तो मैं वो घटना भी सुनाता हूं। पर मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि यह लघु कथाएं एक दिन मिलकर एक पुस्तकका रूप लेगी।

 

 

मुझे कुछ समझ में नहीं आता है। धनु मेरे सामने बैठता है। क्या हुआ? मैं उससे यह पूछ सकता था। पर मैंने ऐसा किया नहीं। यह सुनंदा का अधिकार था। मैं उसमें दखल नहीं देना चाहता था। सुनंदाके पास जो मरीज आते, मैं उनकी केस हिस्ट्री में कभी दखलंदाजी नहीं देता था। सुनंदा के पास अक्सर मानसिक रोगसे ग्रस्त मरीज आते थे। मरीजों को मैं जानता था, लेकिन उनसे कोई सवाल नहीं पूछता था।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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