नाराज हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Naraz Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : नाराज | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : राहत इंदौरी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : मंजुल पब्लिशिंग हाउस | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 129 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "नाराज" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Naraz | This book is written by : Rahat Indori | This book is published by : Manjul Publishing House | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 129 pages. Download link of the book "Naraz" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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राहत इंदौरी | काव्य | 1 MB | 129 |
पुस्तक से :
जिंदगी क्या है खुदही समझ जाओगे बारिशमें पतंगें उड़ाया करो, दोस्तोंसे मुलाक़ात के नाम पर नीम की पत्तिको चबाया करो, शाम के बाद जब तुम सहर देख लो कुछ फकीरोंको खाना खिलाया करो, अपने सीनेपे दो गज जमीं बांध कर आसमानोंका जर्फ आजमाया करो।
नन्ही मुन्नी सब चहकारें कहां गईं मोरों के पैरोंकी पायल भेजो ना, बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो ना, सारे मौसम एक के आदी हैं छांवकी खुशबू, धूप का सन्दल भेजो ना, मैं बस्तीमें आख़िर किससे बात करूं मेरे ही जैसा कोई पागल भेजो ना।
जितने भी थे अपने वो सब पराए थे, हम हवा को गले लगाए थे। जितनी कसमें थी सब थीं शर्मिंदा जितने भी वादे थे वो सर झुकाए थे। जितने आँसू थे वो सब थे बेगाने जितने मेहमां थे सारे बिन बुलाए थे। सब किताबे थी पढ़ी पढ़ाई, सारे क़िस्से सुने सुनाए थे।
रेंगने की भी इजाजत नहीं है हमको वरना,हम जिधर भी जाते नए फूल खिलाते हुए जाते, मुझको रोनेका सलीका नहीं है शायद लोग हंसते हैं मुझे देख के आते आते, अबके मायूस हुआ यारोंको रुख़सत करके के जा रहे थे, तो कोई जख्म लगाके जाते, हमसे पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कमसे कम राहके पत्थर भी तो हटाते जाते।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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