न्याय संग्रह (हिन्दी अनुवाद व विवेचन सहित) पुस्तक | Nyaya Sangraha (With Hindi Translation and Explanation) PDF


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न्याय संग्रह (हिन्दी अनुवाद व विवेचन सहित) हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Nyaya Sangraha (With Hindi Translation and Explanation) Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : न्याय संग्रह (हिन्दी अनुवाद व विवेचन सहित) | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : परमपूज्य आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरिशिष्य मुनि नन्दिघोषविजय | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्म शताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षण निधि, अहमदाबाद | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 33 MB है | इस पुस्तक में कुल 470 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "न्याय संग्रह (हिन्दी अनुवाद व विवेचन सहित)" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Nyaya Sangraha (With Hindi Translation and Explanation) | This book is authored/edited by : Parampujya Acharya Shrivijaysuryodaysurishishya Muni Nandighosh Vijay | This book is published by : Kalikasarvagya Shrihemchandracharya Navam Janm Shatabdi Smriti Sanskar Shikshan Nidhi, Ahmedabad | PDF file of this book is of size 33 MB approximately. This book has a total of 470 pages. Download link of the book "Nyaya Sangraha (With Hindi Translation and Explanation)" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
मुनि नन्दिघोषविजयव्याकरण, संस्कृत 33 MB470



पुस्तक से : 

प्रस्तुत ग्रंथमें मूल न्यायसूत्र का अर्थ, व्याख्या व विवेचन किया गया है। विवेचन करते हुए सभी सूत्रोंकी सार्थकता, साधकता, बाधकता इत्यादि की चर्चा की गई है। सूत्रमें निर्दिष्ट सभी पदोंकी व्याख्या एवं न्याय का रहस्य उजागर किया गया है। इसके लिए सिद्धहेमबृहद्वृत्ति, बृहन्न्यास, लघुन्यास आदि व्याकरण साहित्यका तत्तत् स्थानों पर उपयोग किया गया है।

 

न्यायसूत्रों को समझाने के लिए एक सुगम विवेचन की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को महसूस करते हुए उक्त आचार्यदेव शासनसम्राट् श्रीविजयनेमि सूरिजी महाराजकी ही भव्य परम्परामें हुए आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरिजी महाराजके विद्वान शिष्य मुनिराज श्रीनन्दिघोषविजयजीने प्रस्तुत हिन्दी विवेचनकी रचना की है।

 

यह विवेचन अपने आपमें एक विशिष्ट विवेचन है। यह केवल मूलग्रंथ का अनुवादमात्र नहीं है अपितु सिद्धहेमशब्दानुशासन का पूर्णपरिशीलन एवं उसके ऊपर लिखे गए उपलब्ध सभी ग्रंथों का सूक्ष्म-अवलोकन करके लिखा गया विवेचन है।

 

 

व्याकरणशास्त्र में निर्दिष्ट सूत्रों द्वारा रुपसिद्धिके अवसर पर जब एकाधिक सूत्रोंकी प्रवृत्ति का प्रसंग उपस्थित हो तब अनिष्टरूप साधक सूत्रोंकी निवृत्ति के लिए सूचित सूत्रको न्याय/परिभाषा कहते है। व्याकरणशास्त्रके अध्येता के लिए न्याय/परिभाषा का ज्ञान होना अत्यावश्यक है अन्यथा व्याकरणशास्त्रका सम्यक् बोध नहीं हो पाता। अतः प्रायः सभी व्याकरण परम्परामें परिभाषा प्राप्त होती है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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