पाँच प्राण पाँच देव - श्रीराम शर्मा आचार्य पीडीऍफ़ | Panch Pran Panch Dev - Shriram Sharma Acharya PDF

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पाँच प्राण पाँच देव हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Panch Pran Panch Dev Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : पाँच प्राण पाँच देव | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 11 MB है | इस पुस्तक में कुल 114 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "पाँच प्राण पाँच देव" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Panch Pran Panch Dev | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Press, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 11 MB approximately. This book has a total of 114 pages. Download link of the book "Panch Pran Panch Dev" has been given further on this page from where you can download it for free.


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श्रीराम शर्मा आचार्यधर्म, योग 11 MB114



पुस्तक से : 

एक स्थान पर रहते हुए भी मनुष्य अपनी आत्माकी शक्ति द्वारा दूरवर्ती क्षेत्रोंमें संदेश पहुँचा सकता है। उपरोक्त घटनाओंमें जाने-अनजाने सूक्ष्म-शरीर ही सक्रिय रहा है। यदि सूक्ष्म शरीरकी शक्तिको जागृत कर लिया जाए, तो उससे जब चाहे तब मन चाहे करतब किए जा सकते हैं।

 

यह सूक्ष्म-शरीर जिस प्राण स्फुलिंगके समुच्चय से बना है, वह अपने आपमें अनंत शक्तियोंके स्रोत समाहित किये हुए हैं इसलिए शरीरके पाँच प्राणोंको पाँच देवता कहते हैं। एक देवताकी सहायता मनुष्यको अगर अमर बना देती है तो यदि कोई इन पंचदेवोंको सिद्ध कर ले तो वह कितना समर्थ हो सकता है?

 

आँखों देखीको ही प्रमाण मानने वालों के समक्ष भी आये दिन ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं, जो यह स्पष्ट कर देती हैं कि सामान्यतः जितना विदित है, उससे अनेक गुनी क्षमताएँ मनुष्यके भीतर सन्निहित हैं और ये सभी क्षमताएँ उसमें एक व्यापक विराट् चैतन्य सत्ताके अंश होने के कारण ही हैं।

 

 

जिस प्रकार अखाद्य खाने, दूषित जलवायुमें रहने और असंयम बरतनेसे बाह्य शरीर दुर्बल एवं रुग्ण हो जाता है, उसी प्रकार बुरे कर्म और बुरे चिंतनसे सूक्ष्म-शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वह अपनी समर्थता खो बैठता है। कुमार्गगामीका अंतःकरण सदा दुर्बल और कायर बना रहता है, फलस्वरूप अनेक मानसिक रोग उठ खड़े होते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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