पाणिनीय शिक्षा हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Paniniya Shiksha Hindi Book PDF

 


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पाणिनीय शिक्षा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Paniniya Shiksha Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : पाणिनीय शिक्षा | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : बालकृष्ण शर्मा, संतोष पंड्या | इस ग्रन्थ के भाष्यकार हैं : अवस्थी बच्चूलालो ज्ञानोपाह्व | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्रीनिवासरथ | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 26 MB है | इस पुस्तक में कुल 144 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "पाणिनीय शिक्षा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Paniniya Shiksha | This book is written/edited by : Balakrishna Sharma, Santosh Pandya | Commentary is done by : Avasthi Bachchulala Gyanopahva. This book is published by : Shrinivasrath | PDF file of this book is of size 26 MB approximately. This book has a total of 144 pages. Download link of the book "Paniniya Shiksha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
बालकृष्ण शर्माधार्मिक, भाषा, साहित्य26 MB144



पुस्तक से : 

शिक्षा-वेदाङ्गके उच्चारण सम्बन्धी विषय पर कुछ भी समझने का अधिक अवसर नहीं मिला, क्योंकि आचार्य आदि के करने के पश्चात् सन् १६४६ से समूचे कार्यकालमें हिन्दी का शिक्षक रहा। सन् १९७० के आसपास सागर विश्वविद्यालय के ग्रन्थागार से ले कर मैंने ऋग्वेद-प्रातिशाख्य तथा शुक्लयजुर्वेद-प्रातिशाख्य पढ़े। मुझे विस्मय हुआ कि हमारे पूर्वज ऋषियोंने उच्चारण को बड़ा महत्त्व दिया था.

 

कहना न होगा कि प्राप्त दो वर्ष पूर्व अपने प्रस्तुत ग्रन्थ के लिए जब कुछ सामग्री लेना हुआ तो में लखनऊ जाकर कई दिन डॉ. पाण्डेय के साथ रहा। उन्होंने अपना ग्रन्थ तथा अन्य सामग्री का समवधान कर दिया जिसका मैंने उपयोग कर के इस ग्रन्थके परिशिष्ट लिखे।

 

पाणिनीय शिक्षासूत्र और आपिशल शिक्षासूत्र प्रायः शब्दशा एकरूप है, अतः वहाँ पाणिनीय मत का पृथक पता नहीं चल पाता परन्तु पाणिनीय शिक्षा में हकार, अनुस्वार एवं कम्प के उच्चारण पर सविशेष प्रकाश डाला गया है।

 

 

वेदाङ्ग विद्याके अर्थ में शिक्षा' शब्द करणसाधन है, अतः शिते या सा शिक्षा व्युत्पति होगी जिसके द्वारा अभ्यास अपनाया जाए, शक्ति प्राप्त करने की इच्छा की जाए और उच्चारण के गुणोंकी सहिष्णुता की इच्छा की जाए वह विद्या शिक्षा है शुद्ध उच्चारण की शक्ति अर्जित करने से पाठ्यगुणोंकी तितिक्षा चाही जाती है और तभी अभ्यास सार्थक बनता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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