रसीदी टिकट हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Rasidi Ticket Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : रसीदी टिकट | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : अमृता प्रीतम | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : पराग प्रकाशन, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 3 MB है | इस पुस्तक में कुल 192 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "रसीदी टिकट" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Rasidi Ticket | This book is written by : Amrita Pritam | This book is published by : Parag Prakashan, Delhi | PDF file of this book is of size 3 MB approximately. This book has a total of 192 pages. Download link of the book "Rasidi Ticket" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के संपादक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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अमृता प्रीतम | उपन्यास | 3 MB | 192 |
पुस्तक से :
घर में पिताजी के सिवाय और कोई नही था। वह लेखक जो सारी रात जागते थे, लिखते थे और सारे दिन सोते रहते थे। मां जीवित होती तो शायद सोलहवा साल किसी और तरह से आता परिचितोकी तरह सहेलिया दोस्तो की तरह।
यू भी होता है कि हर परछाई ना जाने कहांसे और किस कायासे टूटकर, तुम्हारे पास आ जाती है और तुम उस परछाई का लेकर दुनिया भरमे घूमते रहते हो और खोजते रहते हो कि यह जिस काया से टूटी है वह कौन-सी है ? गलतफहमियों का क्या है, हो जाती हैं।
लेकिन पिताजी ने इस नियमका रूप बदल दिया। इसकी जगह सब अपनी अपनी चारपाई पर बैठकर अपना-अपना पाठ करें। उन्होने यह नियम बना दिया कि मैं अपनी चारपाईपर बैठकर ऊचे स्वरमें पाठ करूंगी और सब अपनी अपनी चारपाई पर बैठ कर उसे सुनेंगे।
घर में तो नही लेकिन रसोई में हमेशा नानीका राज होता था। सबसे पहले मैंने ही इसका विद्रोह किया था। मै देखा करती थी कि रसोई की एक परछत्ती पर एक साथ तीन गिलास अन्य बर्तनोंसे हटाए हुए सदा एक कोनेमे पड़े रहत थे। ये गिलास सिर्फ तब उतारे जाते थे जब पिताजीके मुसलमान दोस्त आते थे और उनको चाय या फिर लस्सी पिलानी होती थी और उसके बाद मांज धोकर फिर वही रख दिए जाते थे।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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