रूद्रयामल तंत्र हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Rudra Yamala Tantra Hindi Book PDF



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रूद्रयामल तंत्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Rudra Yamala Tantra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : रूद्रयामल तंत्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ रूद्रदेव त्रिपाठी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : रंजन पब्लिकेशन्स, दरियागंज, नई दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 103 MB है | इस पुस्तक में कुल 300 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "रूद्रयामल तंत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Rudra Yamala Tantra | This book is authored/edited by : Dr Rudradev Tripathi | This book is published by : Ranjan Publications, Dariyaganj, New Delhi | PDF file of this book is of size 103 MB approximately. This book has a total of 300 pages. Download link of the book "Rudra Yamala Tantra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ रूद्रदेव त्रिपाठीमंत्र-तंत्र, धर्म 103 MB300



पुस्तक से : 

भारतीय तन्त्र-साहित्य की परिधि और उसकी वैचारिक गहराई विशाल समुद्रके समान है। इसमें लौकिक और पारलौकिक समुन्नतिके वे सभी साधन उपलब्ध हैं, जिनसे सामान्य बुद्धिवाले तथा गहन शास्त्रोंके ज्ञाता दोनों ही अपनी-अपनी रूचि के अनुसार इच्छित वस्तुओंकी प्राप्ति के मार्ग-निर्देशन प्राप्त कर सकते हैं।

 

प्रस्तुत रुद्रयामल - तन्त्र : सर्वोपयोगी सार-संग्रह ग्रन्थ रुद्रयामल के नाम से प्राप्त उन सभी सुलभ और दुर्लभ ग्रन्थों और पाण्डुलिपियों के गहन अध्ययन से निर्मित है, जिनके नाम तो विद्वानों के मुख से सुनने में आते हैं, किन्तु वास्तविकता का ज्ञान नहीं हो पाता था।

 

आस्तिक-जगत्में व्याप्त आस्था की मूल धरोहर तन्त्रशास्त्र ही हैं। धर्म-कर्मकी शिक्षा देने वाले अन्य सभी शास्त्र तन्त्रोंके प्रति श्रद्धा रखते और तदनुसार आचरण एवं साधना पर भी पूरा बल देते रहे हैं। लोककल्याण का सुगम मार्ग तन्त्रशास्त्र ही बताते आये हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।

 

 

मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र, कवच, स्तोत्र, सहस्रनाम, आवरणार्चन, तर्पण, हवन जैसे अनेक विषयों का ऐसा अनूठा संकलन तन्त्रग्रन्थोंकी श्रृंखला में यहां सर्वप्रथम हुआ है, यह कहने में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है । लेखककी दीर्घकालीन तपस्या, शास्त्रीय परम्पराज्ञान तथा गवेषणा दृष्टि के साथ ही गुरुकृपासे पर्याप्त मंथन करके प्राप्त किया गया यह ग्रन्थ चिन्तामणिके समान पाठकोंकी सभी जिज्ञासाओं की पूर्ति में अवश्य सहायक होगा, ऐसा हमें पूरा विश्वास है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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