साधना से सिद्धि - श्रीराम शर्मा आचार्य पीडीऍफ़ | Sadhana se Siddhi - Shriram Sharma Acharya PDF

 

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साधना से सिद्धि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sadhana se Siddhi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : साधना से सिद्धि | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना प्रेस, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 31 MB है | इस पुस्तक में कुल 153 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "साधना से सिद्धि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Sadhana se Siddhi | This book is authored/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | This book is published by : Yug Nirman Yojana Press, Gayatri Tapobhumi, Mathura | PDF file of this book is of size 31 MB approximately. This book has a total of 153 pages. Download link of the book "Sadhana se Siddhi" has been given further on this page from where you can download it for free.


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श्रीराम शर्मा आचार्यधर्म, योग, प्रेरक 31 MB153



पुस्तक से : 

साधना का अर्थ है- अपने आपको साधना । जिन देवी-देवताओंकी साधना की जाती है, वस्तुतः अपनी ही विभूतियाँ एवं सत्प्रवृत्तियाँ हैं। इन विशेषताओंके प्रसुप्त स्थिति में पड़े रहने के कारण हम दीन-दरिद्र बने रहते हैं किन्तु जब वे जागृत, प्रखर एवं सक्रिय बन जाती हैं, तो अनुभव होता है कि हम ऋद्धि-सिद्धियोंसे भरे-पूरे हैं।

 

साधना उपासनाके क्रिया-कृत्य में यही रहस्यमय संकेत-सन्देश सन्निहित है कि हम अपने व्यक्तित्वको किस प्रकार समुन्नत करें और जो प्रसुप्त पड़ा है, उसे जागृत करने के लिये क्या कदम उठायें? सच्ची साधना वही है, जिसमें देवताकी मनुहार करने के माध्यम से आत्म-निर्माण की दूरगामी योजना तैयार की जाती और सुव्यवस्था बनायी जाती है।

 

मनुष्यकी मूल सत्ता एक जीवन्त कल्पवृक्षकी तरह है। ईश्वरने उसे बहुत कुछ- सबकुछ देकर इस संसार में भेजा है। समुद्रतल में भरे मणि-मुक्ताओं की तरह भूतलमें दबी रत्नराशि की तरह मानवी सत्ता में भी असंख्य संपदाओं के भण्डार भरे पड़े किन्तु वे सर्वसुलभ नहीं हैं, प्रयत्नपूर्वक उन्हें खोजना-खोदना पड़ता है ।

 

 

साधनाको माध्यम बनाकर वस्तुतः हम अपने ही व्यक्तित्व की साधना करते हैं । अनगढ़ आदतोंकी बेतुकी इच्छाओं और अस्तव्यस्त विचारणाओं को सभ्यता एवं संस्कृति के शिकंजेमें कसकर ही मनुष्य ने प्रगतिशीलता का वरदान पाया है। इसी परम्पराको जो अपने व्यक्तिगत जीवनमें जितना क्रियान्वित कर लेता है, वह उतना ही श्रेयाधिकारी बनता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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