सामुद्रिक शास्त्र हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Samudrik Shastra Hindi Book PDF

 

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सामुद्रिक शास्त्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Samudrik Shastra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : सामुद्रिक शास्त्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : ज्योतिषाचार्य भृगुराज | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : पुस्तक मंदिर, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 8 MB है | इस पुस्तक में कुल 328 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "सामुद्रिक शास्त्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Samudrik Shastra | This book is authored/edited by : Jyotishacharya Bhriguraj | This book is published by : Pustak Mandir, Mathura | PDF file of this book is of size 8 MB approximately. This book has a total of 328 pages. Download link of the book "Samudrik Shastra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
 ज्योतिषाचार्य भृगुराजज्योतिष, हस्तरेखा, धर्म 8 MB328



पुस्तक से : 

जिस प्रकार औषधि विज्ञान के प्रर्वतकों ने विविध प्रकार की औषधियों को स्वयं भक्षण करके उनके दोषों और गुणों का वर्णन किया है उसी तरह इस विज्ञान के अन्वेषकों ने भी कर्म द्वारा रेखाओंकी रद्दो बदल पर पूर्ण खोज की है। सबका मत यही है कि मनुष्यके कर्मों तथा जीवन के परिवतर्नो का प्रभाव रेखाओं पर अवश्य पड़ता है।

 

यह अवश्य है कि ज्योतिष विद्या को अन्य विद्याओं के देखते हुये बहुत कड़ी मुसीबतें झेलनी पड़ी हैं, किन्तु वह आज भी जीवित है और दिनोंदिन उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रही है। अतः यह तो अवश्य है कि इस विद्यामें सत्य है और इसी सत्य के सहारे वह जीवित है. यह तो हम सब ही जानते हैं कि इस प्रकृति के क्षेत्र में केवल वही ज्ञान या वस्तु स्थायी रह सकती है जिसमें सत्य है.

 

जब से मानव-समाज का जन्म हुआ है तब से ही इस विद्या का भी जन्म हुआ। ऐतिहासिक तथ्यों द्वारा यह स्पष्ट रूपसे प्रमाणित कर दिया गया है कि भारतीय सभ्यता बहुत प्राचीन है। भारत की अन्य ज्ञान-विज्ञान की विद्याओंके साथ ही इस विद्या का भी विकास बढ़ता रहा। भारतीय महर्षियों और सन्तजनोंने संसार को त्याग कर वनमें अपना जीवन व्यतीत करते थे इस ओर अधिक अन्वेषण किए। उन्होंने सौरमण्डल के ग्रहोंकी गति और मनुष्यके हाथकी रेखायें, ललाटका रेखाओं आदि का मनन किया।

 

 

ज्ञान की वृद्धि जब ही सम्भव है ज़ब विद्या को इस रूप में प्रस्तुत किया जा सके कि जन-साधारण को भी उसका समुचित लाभ हो। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये इस पुस्तक को प्रकाशित करने की व्यवस्था की गई है। इस विषय पर अन्य जितनी भी पुस्तकें हैं वह बहुत गौण और गम्भीर है। उनका लाभ जन-साधारण नहीं उठा पाता।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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