संसार की सबसे पुरानी रोटियां हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Sansar Ki Sabse Purani Rotiyan Hindi Book PDF


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संसार की सबसे पुरानी रोटियां हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sansar Ki Sabse Purani Rotiyan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : संसार की सबसे पुरानी रोटियां | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : चंद्रभूषण | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 9 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "संसार की सबसे पुरानी रोटियां" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Sansar Ki Sabse Purani Rotiyan | This book is written/edited by : Chandrabhushan | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 9 pages. Download link of the book "Sansar Ki Sabse Purani Rotiyan" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
चंद्रभूषणकहानी1 MB9



पुस्तक से : 

जिस चूल्हेमें इन साढ़े चौदह हजार साल पुरानी जली हुई रोटियों के अवशेष पाए गए हैं, वह जॉर्डन में स्थित है। यह जमीनमें खुदा हुआ एक चूल्हा है, जिसमें रोटियां पकाते हुए लोग किसी इंसानी हमले या प्राकृतिक आपदामें इसे छोड़कर भाग खड़े हुए होंगे।

 

इस बातको जेहन में अंटाना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि दुनियामें खेती होने के जो भी प्रमाण मिले हैं, उनका समय नौ हजार साल से ज्यादा पुराना नहीं है। इसे एक हजार साल और पहले खींच ले जाएं तो भी यही कहना होगा कि ये रोटियां खेती शुरू होनेसे चार हजार साल पहले पकी थीं।

 

इसमें उपयोग किया गया दाना बाजरा या गेहूं की किसी अतिप्राचीन किस्म के हो सकते हैं। कुछ अवशेष कंद जैसी वनस्पति के भी हो सकते हैं। यह इलाका नटूफियन सभ्यता से जोड़कर देखा जाता है, जिसका समय साढ़े बारह हजार साल से साढ़े नौ हजार साल पहले का माना जा रहा है।

 

 

क्या रोटियां गीले या नम अनाजको सीधे पत्थरों से कूटकर भी बनाई जाती रही होंगी? अपने जीवन के एक ठीक-ठाक हिस्से में मैंने घर के पिसे आटेकी रोटियां खाई हैं। बिजलीसे चलने वाली चक्की शुरू होने के बाद सिर्फ पांच से दस सालों में उस दौरको याद करना भी मुश्किल हो गया। टेक्नॉलजी के बल पर हम हजार साल पुरानी पकी रोटी को भी याद कर पा रहे हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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