संस्कृत शास्त्र मञ्जूषा पुस्तक पीडीऍफ़ | Sanskrit Shastra Manjusha Book PDF



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संस्कृत शास्त्र मञ्जूषा पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sanskrit Shastra Manjusha Book



इस पुस्तक का नाम है : संस्कृत शास्त्र मञ्जूषा | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ उदयशंकर झा | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 196 MB है | इस पुस्तक में कुल 676 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "संस्कृत शास्त्र मञ्जूषा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Sanskrit Shastra Manjusha | This book is authored/edited by : Dr Udayshankar Jha | This book is published by : Chaukhamba Surbharti Prakashan, Varanasi | PDF file of this book is of size 196 MB approximately. This book has a total of 676 pages. Download link of the book "Sanskrit Shastra Manjusha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ उदयशंकर झासंस्कृत, भाषा, साहित्य 196 MB676



पुस्तक से : 

संस्कृतविषयस्य सर्वासां परीक्षाणां कृते. यू.जी.सी. नेट (संस्कृत कोड 25 एवं 73) द्वितीय प्रश्नपत्र परीक्षा एवं विभिन्न राज्यस्तरीय यू.जी.सी. नेट समकक्ष परीक्षा, विभिन्न संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित शिक्षाशास्त्री (बी.एड.) प्रवेश परीक्षा, राज्यस्तरीय प्राध्यापक पात्रता (संस्कृत) परीक्षा एवं अध्यापक चयन परीक्षा. 

 

आई.ए.एस, पी.सी.एस तथा अन्य प्रशासनिक प्रतियोगी (संस्कृत) परीक्षा संस्कृत विषयक शास्त्री, आचार्य, बी.ए. एम.ए. एम.फिल, पी.एचडी प्रवेश परीक्षा, धर्मशिक्षक भर्ती परीक्षा एवं अन्य प्रतियोगिता (संस्कृत) परीक्षा.

 

सुविदितिमेव सर्वेषां शिक्षातल्लजानां यद् शिक्षयैव राष्ट्रस्य सर्वविधविकाशः सेत्स्यति तत्रापि यदि शिक्षका शिक्षणदक्षा भवेयुस्तदैवच्छात्राः सम्यशिक्षा ग्रहीष्यन्ति। मन्ये शिक्षकाणां कोटयः पञ्चधा भवन्ति - 1.) वञ्चका, 2.) रञ्जका, 3.) ग्रन्थपाठका, 4.) प्रत्येकं विश्लेषकाः, 5.) समूहालम्बकारच। तेषु वञ्चकाः शिक्षकाः छात्राणां पुरस्तात्विषयं परित्यजन्तो विषयान्तरं कृत्वा समयाकुर्वन्ति।

 

 

भारतवर्ष वाटिकायां संस्कृतशास्ववृक्षः प्राचीनकालादेव बहुभि विचक्षण ग्रन्थकृन्मालाकार: स्वज्ञानजलेन संसिक्तः सन् पुष्पित फलितश्च अस्य संस्कृतशास्ववृक्षस्य प्रधानमूलं ऋग्यजुस्सामाथर्वाणः इति चत्वारो वेदाः, उपमुलानि वेदाङ्गानि शिक्षा, व्याकरणं, निरुक्तं, ज्योतिष, छन्दः, कल्पश्चेति षडङ्गानि सन्ति। अस्य संस्कृतशास्त्र वृक्षस्य शाखा: भाषाविज्ञान, नव-दर्शनानि, पुराणेतिहासौ, धर्मशास्त्रकर्मकाण्डज्य सन्ति।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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