संत कबीर दास जी हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sant Kabir Das Ji Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : संत कबीर दास जी | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 18 MB है | इस पुस्तक में कुल 162 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "संत कबीर दास जी" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Sant Kabir Das Ji | This book is written/edited by : Unknown | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 18 MB approximately. This book has a total of 162 pages. Download link of the book "Sant Kabir Das Ji" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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ज्ञात नही | धार्मिक | 18 MB | 162 |
पुस्तक से :
छन इक ध्यान विदेह समाई, ताकी महिमा वरणि न जाई। काया नाम सबे गोहरावे, नाम विदेह विरले कोईपावे। जो युग चार रहे कोई कासी, सार शब्द विन यमपुरवासी। नीमषार बद्री परधामा, गया द्वारिका प्राग अनाना।
कौन द्वीप हंसको वासा, कौने द्वीप पुरुष रहवासा। भोजन कौन हंस तह करई, और बानी कहँ पुनि उच्चरई। कैसे पुरुष लोग रचि राखा, द्वीपहि करकेसे अभिलाखा। तीन लोक उत्पत्ती भाखो, वर्णदुसकल गोयजनि राखो। कालनिरंजन केहि विधिभयऊ, कैसे पोडश सुत निर्मयऊ।
औरो मृतक भाव सुनिलेहू, निरखिपरखिगुरुमगुपगु देहू। जैसे किसान बनावे, रतीरती कर देह कटावे। कोल्हू मह पुनि आप पिरावे, पुनि कड़ाहमें आपउँटावे। जिन तनु दाहे गुड़ तब होई, बहुरि ताव दे खांड विलोई। ताह माहि तावपुनि दीन्हा, चीनी तबै कहावन लीन्हा। चीनी होय बहुरि तनजारा, ताते मिसरी है अनुसारा।
आप पुरुष किये द्वीपनिवासा, पंचम शब्द तेज परकासा। पांच शब्द जब पुरुष उच्चारे, काल निरंजन भो औतारा। तेज अंगते कालह्वे आवा, ताते जीवन कह संतावा। जीवरा अंश पुरुषका आही, आदिअन्त कोउ जानत नाही। छठे शब्द पुरुष मुखभाषा, प्रगटे सहजनाम अभिलाषा। सत शब्द भयो संतोषा, दीन्हो द्वीप पुरुष परितोषा। अठयें शब्द पुरुष उचारा, सुभाष द्वीप बैठारा।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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