शांभवी तंत्र हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Shambhavi Tantra Hindi Book PDF



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शांभवी तंत्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shambhavi Tantra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : शांभवी तंत्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ पंडित गोपीनाथ कविराज | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 36 MB है | इस पुस्तक में कुल 134 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "शांभवी तंत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shambhavi Tantra | This book is authored/edited by : Dr Pandit Gopinath Kaviraj | This book is published by : Bharatiya Vidya Prakashan, Varanasi | PDF file of this book is of size 36 MB approximately. This book has a total of 134 pages. Download link of the book "Shambhavi Tantra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
 डॉ पं. गोपीनाथ कविराजधर्म, तन्त्र 36 MB134



पुस्तक से : 

इस तन्त्र को प्रायः लुप्त तन्त्र माना गया है। परम्परा की दृष्टि से इसे शैव तंत्र के अन्तर्गत् कहा जा सकता है। मानवके विकास की विधा में साधना का स्थान अन्यतम है। साधना क्रममार्ग के अवलम्बन से सम्पन्न होती है। अर्थात् क्रमिक रूप से सोपान क्रम से उर्ध्वारोहण।

 

इसी कारण से एक ही शास्त्र में अधिकारी भेद को प्रधान रखकर तदनुरूप अनेक साधनाओं का वर्णन किया गया है। जो जिस प्रकार की योग्यता से सम्पन्न है, वह तदनुरूप साधना का वरण करता है। तदनुरूप साधना का वरण करने के अभाव में साधक अग्रगामी गति प्राप्त कर सकने से वंचित रह जाता है।

 

इस प्रकार कर्म मार्ग का अवलम्बन लेने पर अथवा उसका गहन अध्ययन करने पर यह विदित होने लगता है कि प्राचीन काल में विभिन्न स्तर के साधक वर्ग के हितार्थ सरल उपयोगी सम्यक् साधना का विधान किया गया था। विधान व्यक्ति अथवा समुदाय द्वारा गठित अथवा रचित नहीं था।

 

 

जो साधना किसी एक साधकके लिये उपादेय है, वही साधना किसी अन्य साधक के लिये हानिकर भी हो सकती है। इसीलिये विधान है कि योग्य तथा अन्तर्दृष्टि से साधक सम्पन्न गुरु की पूर्वजन्मार्जित योग्यताका आकलन करते हुये, उसी क्रमसे आगे वाली साधना का विधान करते हैं। इसी कारण प्राचीन काल के एक ही गुरु अथवा ऋषि विभिन्न साधकोंको विभिन्न साधन निर्देश देते हुये परिलक्षित होते है ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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