श्रावण मास माहात्म्य हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Shravan Maas Mahatmya Hindi Book PDF

 


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श्रावण मास माहात्म्य हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shravan Maas Mahatmya Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्रावण मास माहात्म्य | इस पुस्तक के मूल रचनाकार हैं : महर्षि वेदव्यास | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : भार्गव पुस्तकालय, गायघाट, बनारस | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 13 MB है | इस पुस्तक में कुल 253 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्रावण मास माहात्म्य" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shravan Maas Mahatmya | This book is originally written by : Maharshi Vedvyas| This book is published by : Bhargava Pustakalaya, Gayghat, Banaras | PDF file of this book is of size 13 MB approximately. This book has a total of 253 pages. Download link of the book "Shravan Maas Mahatmya" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
 महर्षि वेदव्यासधर्म, भक्ति 13 MB253



पुस्तक से : 

इन मासों से कोई श्रेष्ठ मास आप को सम्मत हो । क्योंकि ईश्वरको सदा धर्म प्रिय है. इस समय उसको आप कहिये जिसके सुनने से फिर मेरी अन्यत्र सुनने की इच्छा न होवे और वक्ता (व्यास) लोग श्रद्धालु श्रोतासे तो कोई बात गुप्त ही नहीं रखते हैं ॥ सूतजी बोले आप समस्त मुनिलोग श्रवण करें, आपके वचनगौरव से मैं प्रसन्न हुआ और आपके लिये मेरे को कोई भी गोप्य वस्तु नहीं है.

 

इसलिये आर्त (पीड़ित), तथा जिज्ञासु मक्त, अर्थी और मुमुक्षु ॥ इन चतुर्विधजनों से अपनी अभीष्ट अभिलाषा से यह श्रावण मास सेवन योग्य है। सनत्कुमार जी बोले कि हे भगवन्! आपने जो कहा कि इस मासमें कोई भी दिन व्रतशून्य नहीं है ॥ और प्रायः करके इस मासमें तिथि भी व्रतशून्य नहीं हैं।

 

सप्ताहानि ततः पूर्वे अगस्त्याव्यं समाचरेत् ॥ द्वादशेष्वपि मासेषु आदित्यो भिन्नसंज्ञया ॥ ४० ॥ तपते श्रावणे तत्र गभ स्तिरिति संज्ञतिः ॥ तत्पूजनं च कर्तव्यं मासेऽस्मिन्भक्तितत्परैः ॥४१॥ चतुर्षु यानि मासेषु बतानि विहितानि च ॥ श्रावणे च त्यजेच्छाकं दषि भाद्रपदे तथा ॥४२॥ दुग्धमाश्वयुजे मासि कार्तिके द्विदलं त्यजेत् ॥ इत्यादीनि समस्तानि तानि कर्तुमशक्नुवन् ॥ ४३ ॥

 

 

आपका प्रिय कैसे हुआ तथा किस कारण से पवित्र कहा गया॥ इस मास में कौन अवतार श्रेष्ठ माना गया है? और यह मास श्रेष्ठ कैसे हुआ? तथा इस मासमें कौन धर्म अनुष्ठान करने योग्य है हे प्रभो! सो मुझसे कहिये. आपके सामने मुझ मूर्खको प्रश्न करने का कितना ज्ञान हो सकता है? इसलिए पूछने से जो रह गया है वह सब मुझसे कहिये.

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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