श्री भक्तमाल - श्री नाभा जी हिन्दी पुस्तक | Shri Bhaktmal - Shri Nabha Ji Hindi Book PDF


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श्री भक्तमाल हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Bhaktmal Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्री भक्तमाल | इस पुस्तक के मूल रचनाकार है : श्री नाभा जी | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : श्री ब्रजवल्लभ शरण | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री वियोगी विश्वेश्वर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 40 MB है | इस पुस्तक में कुल 1035 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्री भक्तमाल" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Bhaktmal | This book is originally written by : Shri Nabha Ji | This book is written/edited by : Shri Brajvallabh Sharan | This book is published by : Shri Viyogi Vishweshwar | PDF file of this book is of size 40 MB approximately. This book has a total of 1035 pages. Download link of the book "Shri Bhaktmal" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री नाभा जीधार्मिक 40 MB1035



पुस्तक से : 

जिस भी प्रान्त में आचार्य श्री का पधारना हुआ, वहां भावुक भक्तो की सदा ही भीड़ लगी है। सभी धार्मिक एवं साहित्यिक और राष्ट्रके प्रगतिशील महानुभावों ने आपकी सरलता, शान्ति-प्रियता, सरिता आदि सद्गुणों की घोर प्रशंसा करते हैं।

 

भक्तमाल में वर्णित महानुभावों में परशुराम देवाचार्य कृत परशुराम सागर और श्रीहरिरामजी रचित व्यसबानी इन ग्रन्थों में कुछ भक्तो का एकमत है। श्रीपरशुराम जी हरिराम व्यास जी से पूर्ववर्ती थे। किन्तु इन दोनों ही रचनाकारों ने कोई स्वतन्त्र भक्तनामा वली नहीं लिखी।

 

उन सब के परिहार में भक्त श्री रामजीलाल जी ने अनेकों प्रकारका योग दिया हैं। यह कहना किसी भी प्रकार से गलत नही होगा कि इस परिवार पर श्रीविहारीजी महाराजकी सदा ही कृपा रही है। इन्होने अपनी छत्र छायामें इस परिवार को आवास दिया है और इसके द्वारा अनेको सेवाएं वृन्दावनमें करा रहे हैं।

 

 

इन विभूतियों ने संसारके किसी भी कोने में या किसी समयमें अवतार ग्रहण किया हो, ऐसी बात नहीं है। ये महापुरुष ब्रह्मांड के प्रत्येक कोने, प्रत्येक जाति और कालमें हुए। वे जीव मात्र के कल्याणमें जुट गए। इनसे द्वेष करने वालोपार भी इन्होंने कृपा की है। भटकते हुए प्राणियों को मार्ग इन्होने ही दिखाया है। इन्होने अंधकार में भ्रमित मनुष्यों का पथ प्रशस्त किया है। और लोगोको दिव्य ज्योति भी प्रदान की है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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