श्री रामचरितमानस - गोस्वामी तुलसीदासजी हिन्दी ग्रन्थ | Shri Ramcharitmanas - Goswami Tulsidas ji Hindi Book PDF

  

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श्री रामचरितमानस हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Ramcharitmanas Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्री रामचरितमानस | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : श्री गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 34 MB है | इस पुस्तक में कुल 659 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्री रामचरितमानस" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Ramcharitmanas | This book is authored/edited by : Shri Goswami Tulsidas ji Maharaj | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 34 MB approximately. This book has a total of 659 pages. Download link of the book "Shri Ramcharitmanas" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्रीगोस्वामी तुलसीदासजीभक्ति, धर्म, महाकाव्य 34 MB659



पुस्तक से : 

आनन्दकानने ह्यस्मिञ्जङ्गमस्तुलसीतरुः।  कवितामञ्जरी भाति रामभ्रमरभूषिता ॥ इस काशीरूपी आनन्दवन में तुलसीदास चलता-फिरता तुलसी का पौधा है। उसकी कवितारूपी मञ्जरी बड़ी ही सुन्दर है, जिस पर श्रीरामरूपी भँवरा सदा मँडराया करता है।

 

संवत १६३१ का प्रारम्भ हुआ। उस साल रामनवमी के दिन प्रायः वैसा ही योग था जैसा त्रेतायुगमें रामजन्म के दिन था। उस दिन प्रातःकाल श्रीतुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। दो वर्ष, सात महीने, छब्बीस दिन में ग्रन्थ की समाप्ति हुई। संवत १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।

 

इधर भगवान् शंकरजीकी प्रेरणा से रामशैल पर रहनेवाले श्रीअनन्तानन्दजी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्दजी ने इस बालक को ढूँढ़ निकाला और उसका नाम रामबोला रखा। उसे वे अयोध्या ले गये और वहाँ संवत् १५६१ माघ शुक्ला पञ्चमी शुक्रवार को उसका यज्ञोपवीत संस्कार कराया।

 

 

चित्रकूट पहुँचकर रामघाट पर उन्होंने अपना आसन जमाया। एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले थे। मार्ग में उन्हें श्रीरामके दर्शन हुए। उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिये जा रहे हैं। तुलसीदासजी उन्हें देखकर मुग्ध हो गये, परंतु उन्हें पहचान न सके।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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