श्री रूप भवानी रहस्योपदेश हिन्दी पुस्तक | Shri Roop Bhawani Rahasyopadesh Hindi Book PDF

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श्री रूप भवानी रहस्योपदेश हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Roop Bhawani Rahasyopadesh Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्री रूप भवानी रहस्योपदेश | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ रमेश कुमार शर्मा | इस ग्रन्थ के भाष्यकार हैं : डॉ त्रिलोकी नाथ गंजू | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री अलख साहिबा ट्रस्ट, श्रीनगर, कश्मीर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 150 MB है | इस पुस्तक में कुल 259 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्री रूप भवानी रहस्योपदेश" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Roop Bhawani Rahasyopadesh | This book is authored/edited by : Dr Ramesh Kumar Sharma | Translator of this book is : Dr Trilokinath Ganju | This book is published by : Shri Alakh Sahiba Trust, Shrinagar, Kashmir | PDF file of this book is of size 150 MB approximately. This book has a total of 259 pages. Download link of the book "Shri Roop Bhawani Rahasyopadesh" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ रमेश कुमार शर्माधर्म, साधना150 MB259



पुस्तक से : 

श्री भवानीके जन्मस्थान देदमर (विद्दामठ), नवाकदल, श्रीनगरमें ज्येष्ठ पूर्णिमा को श्रीअलख साहिबा का जन्मदिन मनाया जाता है और यज्ञ रचाया जाता है। यहाँ पर जन्मस्थान से संलग्न जमीन का खरीदना और मन्दिर तथा अमृतकुण्ड का निर्माण ट्रस्ट ने कराया. अन्य आवश्यक निर्माण कार्य चल रहे है।

 

"क+अश्म + ईर" = चट्टानों के बीच रुके हुए पानी को बहा दिया। अतः इस देशका नाम कश्मीर पड़ा। आज से सत्ताइस सौ वर्ष पूर्व काशकृत्स्न व्याकरण के आधार पर कश्मीर शब्दका मूलधातु "कशिर दीप्ती" पर आधारित है। संभवतः यही कारण है कि कश्मीरी भाषाभाषी कश्मीर को "कशीर" और यहां के निवासीको "कार" कहते हैं.

 

इस कथन के अनुसार यहाँके गिरिशिखरों ने, देवदार के सरसराते वृक्षोंकी फुगियों ने, झरझराते हुए पानी के झरनों ने, संगीत मुखर जलप्रपातों ने, विविध रंगोंकी चटती कलियों ने लहरोंमें तैरते सरोवरोंने तथा अनन्त प्राकृतिक वैभव ने इन ऋषियोंकी गम्भीर एवं दाशिनिक पहेलियोंको अपनी सहज मुस्कानमें सुलझाया है।

 

 

कश्मीर संस्कृत साहित्यका एक प्रमुख केन्द्र रहा है। यदि कश्मीरके संस्कृत साहित्यके योगदानको शेष भारतसे काट दिया जाय तो भारतीय संस्कृतिका संस्कृत साहित्य पंगु हो जायगा. कश्मीरका यह योगदान इतना गौरवशाली है कि आधुनिक भारतका कोई भी प्रदेश इसकी तुलना नहीं कर सकता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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